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महाराष्ट्र से ओड़िसा जाने के लिए साइकिल से निकले थे मजदूर, छत्तीसगढ़ सरकार की मदद से घर जाना हुआ आसान, छत्तीसगढ़ की सिमा पर पहुंचते ही बस की मिली सुविधा… मजदूरों ने कही ये बात

Poonam Shukla
Last updated: 2020/05/17 at 12:26 PM
Poonam Shukla
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5 Min Read
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रायपुर 17 मई 2020/ ओडिशा के कंधमाल जिला के रहने वाले हेमंत, कपूना बेहरा और जसवंत बगोरती के पास जब अपने गांव में कुछ काम नही था तब इन तीनों ने शहर जाकर कुछ नया काम करने और कुछ रूपये जोड़ने की ठानी। हेमंत को अपनी बहन की शादी के लिए भी कुछ रकम जुटानी थी। इसलिए लगभग चार महीना पहले महाराष्ट्र के पुणे में जाकर बोरिंग करने का काम एक ठेकेदार से जुड़कर शुरू किया। अभी दो माह ही हुए थे, उनका बुना हुआ सपना पूरा हो पाता इससे पहले ही देश में अचानक से लाॅकडाउन हो गया। कुछ दिन में लाॅक डाउन खुल जायेगा और काम फिर से शुरू हो जाएगा,कुछ इन्हीं उम्मीदों के साथ इन तीनों दोस्तों ने एक कमरे में बिना किसी काम के दो माह तक अपना दिन गुजारा। इस बीच जो कमाये थे वह बची खुची रकम भी खर्च हो रही थी। हाथ में बहुत कम पैसे बचे थे, लाॅकडाउन कब खुलेगा, यह भी कुछ अंदाजा लगा पाना मुश्किल हो रहा था, आखिरकार सब्र का बांध टूट गया और अन्य सैकड़ों मजदूरों की तरह ये तीनों साथी पुणे से नया-पुराना साइकिल खरीदकर ओडिशा के लिए निकल पड़े। लगातार चार दिन तक साइकिल से सफर और कुछ जगहों पर ट्रक के सहारे किसी तरह ये छत्तीसगढ़ की सीमा तक पहुच गए। यहा छत्तीसगढ़ राज्य आते ही सीमा पर खान-पान और बस की व्यवस्था ने ओडिशा के इन प्रवासी मजदूरों का दिल जीत लिया। बस मिलते ही अपनी साइकिलें ऊपर चढ़ाई और मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का धन्यवाद करते हुए कहा कि पुणे से निकलते ही अपने गांव तक की लंबी दूरी को सोचकर बहुत तनाव में थे, उन्हें साइकिल का सफर बहुत मुश्किल लग रहा था लेकिन अब बस की सुविधा मिल जाने से उनका मुश्किल सफर, राहत का सफर बन गया है और आसानी से अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे।
ओडिशा के कंधमाल जिला से महाराष्ट्र के पुणे गए हेमंत, कपूना बेहरा और जसवंत बगोरती ने बताया कि वे मजदूर है और अब अपना काम बंद होने पर गांव वापस लौट रहे हैं। इन्होंने बताया कि पुणे में एक ठेकदार के साथ जुड़कर बोरिंग खुदाई का काम करते थे। लाॅक डाउन होने के बाद काम बंद हो गया। किसी तरह से दो माह काटते रहे। हेमंत ने बताया कि महाराष्ट्र में कोरोना का खतरा बहुत ज्यादा है इसलिए लाॅक डाउन कब खुलेगा यह गारंटी नही है ऐसे में सभी मजदूर अपने-अपने घर को लौट रहे हैं। उसने बताया कि हमारे पास कोई साधन नही था, कुछ पैसे थे उससे तीनों ने नयी-पुरानी साइकिल खरीदी और इसी साइकिल को चलाते 4 दिन तक कई सौ किलोमीटर का सफर तय किया। जसवंत ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में प्रवेश करते ही हमारी मुश्किलों का अंत होना शुरू हो गया। बार्डर पर राहत शिविर में प्रशासन और समाजसेवियों के माध्यम से खान-पान की व्यवस्था की गई थी। रास्ते में खाने के लिए पैकेट और पानी भी दिया गया। बार्डर से रायपुर तक आने बस की व्यवस्था की गई, जिससे साइकिल चलाना नही पड़ा। रायपुर आने के बाद टाटीबंध चैक में राहत शिविर में शासन-प्रशासन के साथ छत्तीसगढ़ के समाजसेवियों ने खान-पान की व्यवस्था सहित ओडिशा जाने के लिए बड़ी बस का इंतजाम किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार ने कठिन समय में हमारे लिए बस और भोजन की व्यवस्था कर जो राहत पहुचाई है उससे हम लोग बहुत खुश है। हमें भीषण गर्मी में जान जोखिम में डालकर साइकिल नही चलाना पडे़गा और एक लंबा सफर बस के माध्यम से आसानी से पूरा कर लेंगे।
इसी तरह बलौदाबाजार जिला के ग्राम अर्जुनी और तारस के श्रमिक मिलापचंद पटेल और टेंकू सिह पटेल भी है। जिन्हें सैकड़ों मजदूरों की तरह छत्तीसगढ़ सरकार से राहत की बस मिली है। महाराष्ट्र के सतारा जिला में मजदूरी करने वाले मिलापचंद और टेंकू सिंह पटेल लाॅकडाउन की वजह से परिवार सहित वही फसे हुए थे। किसी तरह छत्तीसगढ़ की सीमा तक पहुचने के बाद बस से रायपुर पहुचे। यहा टाटीबंध में राहत शिविर में भोजन और अन्य व्यवस्थाओं के बाद बस की सुविधा मिली। कई दिनों से हलाकान इन श्रमिकों ने राहत की सास लेते हुए बुरे समय पर छत्तीसगढ़ सरकार और यहा के समाजसेवियों की सहयोग की सराहना करते हुए बार बार धन्यवाद दिया।

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