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जानिए।”गिरीश कर्नाड” की ज़िंदगी की कुछ अहम बाते…

Neeraj Gupta
Last updated: 2020/05/18 at 11:03 AM
Neeraj Gupta
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3 Min Read
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जाने माने अभिनेता, नाटककार, लेखक गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई को 1938 में हुआ था। 10 जून 2019 को उनका निधन हो गया था। गिरीश महाराष्ट्र के उस माथेरान में जन्मे जहां आज भी मोटरगाड़ी से पहुंचना नामुमकिन है। वहां से निकलकर उन्होंने जितना नाम कमाया ऐसा विरले ही किसी को नसीब हो। 

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कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मलयालम के अलावा हिंदी और मराठी सिनेमा में भी उन्होंने उत्कृष्ट अभिनय किया। उनकी शुरुआती पढ़ाई मराठी में हुई। गिरीश कर्नाड ने 1958 में कर्नाटक आर्ट्स कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन किया।
वे कहते थे मैं कवि बनना चाहता था लेकिन मेरी थियेटर में भी रुचि थी, मेरा नाटक लेखक बनने का कोई इरादा नहीं था। स्कॉलरशिप मिलने के बाद मैं लंदन पहुंचा। उस समय एक धारणा थी कि यदि मैं विदेश जाऊंगा, तो मैं विदेश की किसी गोरी मेम से शादी कर लूंगा। तभी एक दिन मेरे मन में ययाति लिखने का विचार आया। इसके बाद जिंदगी में कई मोड़ आए। उन्होंने कहा था कि नाटकों के लेखन-निर्देशन, अभिनय के अलावा फिल्म निर्देशन में भी आया। 
उनके लिखे नाटकों में ‘ययाति’, ‘तुगलक’, ‘हयवदन’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नागमंडल’ और ‘अग्नि और बरखा’ काफी प्रसिद्ध रहे हैं। गिरीश कर्नाड की लेखनी में जितना दम था, उन्होंने उतने ही बेबाक अंदाज में अपनी आवाज को बुलंदी दी। उनकी तमाम राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका रही।

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गिरीश कर्नाड ने 1970 में कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ से अपना फिल्मी सफर शुरू किया। उन्हें दूरदर्शन पर प्रसारित किए जाने वाले मशहूर शो मालगुड़ी डेज में स्वामी के पिता की भूमिका के लिए भी याद किया जाता है। उनकी मशहूर कन्नड़ फिल्में तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी, कादु और कन्नुड़ु हेगादिती रही हैं।

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हिंदी में उन्होंने ‘निशांत’, ‘मंथन’ और ‘पुकार’ जैसी फिल्में कीं। इसके अलावा सलमान खान के साथ वो ‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ में भी दिखाई दिए थे, यही उनकी आखिरी हिंदी फिल्म भी थी। उनकी आखिरी फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी ‘अपना देश’ थी।

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बड़े सम्मानों से साझा गया :
1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्मश्री, 1992 में पद्मभूषण पाने वाले गिरीश कर्नाड को अमर उजाला की ओर से आकाशदीप सम्मान दिया जा चुका है। भारतीय भाषाओं के सामूहिक स्वप्न के सम्मान में अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा लेखन-जीवन के समग्र अवदान के लिए सर्वोच्च शब्द सम्मान ‘आकाशदीप’ दिया जाता है। यह सम्मान उन्हें साल 2018 में दिया गया था।

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