नई दिल्ली। देशभर के श्रमिक अलग-अलग प्रदेशों में फंसे हुए हैं, जिन्हें उनके घर पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने ट्रेनों का इंतजाम किया है, लेकिन मजदूरों की संख्या के मुकाबले ट्रेनों की संख्या काफी कम है। ऐसे में श्रमिकों को पहुंचाने का काम मंद पड़ गया है, वहीं जो ट्रेन चल भी रही है, वह समय पर अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पा रही है, इसके पीछे वजह ट्रेक पर जारी लगातार टेªनों की भीड़ है, जिसकी वजह से रूट डायवर्ट करना पड़ रहा है और 36 घंटे का सफर 70 घंटे बाद पूरा हो रहा है।
प्रवासी मजदूरों के लिए रोजाना सैकड़ों श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है, लेकिन इनमें से कुछ ट्रेन ऐसी है, जो बहुत देर से अपनी मंजिल तक पहुंच रही है हालत ये है कि 30 घंटे का सफर 4 दिन में पूरा हो रहा है। रास्ते में भूख, प्यास और गर्मी से मजदूर परेशान है। मजदूरों के सब्र का बांध टूट रहा है और वह हंगामा करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
दरअसल, दिल्ली से बिहार के मोतिहारी जा रही ट्रेन चार दिन में समस्तीपुर पहुंची, जबकि यात्रा महज 30 घंटे की है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें मोतिहारी का टिकट दिया गया है और ट्रेन पिछले 4 दिनों से उन्हे घुमा- घुमा कर ले जा रही है। लोगों का कहना है कि मुसीबत के वक्त वो घर लौट रहे हैं और अब ये सफर भी मुसीबत बन गई है।
फ्लेटफॉर्म पर बच्ची का जन्म
दिल्ली से मोतिहारी के लिए चली ट्रेन चार दिनों में समस्तीपुर पहुंची, जहां ट्रेन में महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया तो उसे ट्रेन से उतारा गया। आलम ये था कि महिला ने बिना किसी मेडिकल सुविधा के एक बच्ची को प्लेटफॉर्म पर ही जन्म दिया। इस बीच जानकरी मिलने पर रेलवे के सीनियर डीसीएम अपनी गाड़ी लेकर महिला को अस्पताल ले जाने पहुंच गए।
36 घंटे का सफर 70 घंटे में
समस्तीपुर पहुंची एक ट्रेन के यात्री बताते है कि उसने पुणे में 22 मई को ट्रेन पकड़ी थी और छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल की सैर कराते हुए ट्रेन 25 मई को दोपहर में समस्तीपुर पहुंची। इसी तरह दूसरे यात्री ने बताया कि उन्होंने पुणे में ट्रेन पकड़ी थी। इस दौरान भारत भ्रमण कराते हुए 70 घंटे बाद ट्रेन समस्तीपुर पहुंची, जबकि यात्रा में महज 36 घंटे लगते हैं।