रायपुर। छग के प्रथम मुख्यमंत्री का ताज अपने सिर पर बांधने का सौभाग्य अजीत प्रमोद जोगी को मिला था। 1 नवंबर 2000 को जब छत्तीसगढ़, मप्र से अलग होकर पृथक राज्य बना तो 20 साल पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री का सेहरा अजीत जोगी के सिर पर बंधेगा, जबकि कई दिग्गज कतारबद्ध थे। आज वे हमेशा के अपने परिवार, समर्थकों को प्रदेश को अलविदा कह चुके हैं।
एक कलेक्टर रहते, राजनीति में प्रवेश के लिए देश के तात्कालीन प्रधानमंत्री का फोन आना और फिर उनका राजनीतिक सफर शुरू होना किसी इत्तफाक से कम नहीं था, लेकिन जितने तेज प्रशासक के तौर पर उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी, उतनी ही कुशाग्रता से उन्होंने राजनीति में न केवल कदम रखा, बल्कि निरंतर मुखर होते चले गए।
अजीत जोगी का सफरनामा
अजीत जोगी अपनी कुशाग्र बुद्धि के लिए जाने जाते हैं। मैकेनिकल इंजीनियर रहते उन्होंने आईपीएस की परीक्षा पास की। महज दो साल बीता और उन्होंने आईएएस बनकर सफलता का एक और झंडा गाड़ दिया। उनकी तेज दिमाग की वजह से कोई उनसे सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर पाता था। तब उन्होंने खुद भी नहीं सोचा था कि वे एक दिन मुख्यमंत्री बनकर करोड़ों लोगों के दिलों-दिमाग में राज करेंगे। पर यह भी हुआ और छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री का सेहरा उनके सिर बांधा गया।
बात 1985 की है। अजीत जोगी इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में भारी वोट देकर मतदाताओं ने चुनकर प्रधानमंत्री बनाया था। एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे। पार्टी ने पहले उन्हें पार्टी के एसटी-एससी कमिटी का सदस्य बनाया फिर कलेक्टर के पद के बदले राज्यसभा की सदस्यता दिला दी।
1999 में शहडोल लोकसभा सीट से वह चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद जब नया राज्य बना तो स्थानीय कांग्रेस में ऐसा समीकरण बना कि जोगी को सीएम बनने का मौका मिल गया। 2000 से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक उनके पास ये पद रहा, लेकिन, फिर से वह इस पद पर वापसी नहीं कर सके। इससे पहले 1986 से 1998 तक उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा में बिठाए रखा था। पहली बार 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते थे।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले तो उन्होंने अपनी टीम बनाई, जिसमें राज्य के दिग्गज नेताओं को अपने मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया। इसके बाद उन्होंने राज्य के गांव गांव का दौरा शुरू किया। इस दौरान सार्वजनिक सभाओं में अक्सर वे इस बात को दोहराते थे कि ’’ हां, मैं सपनों का सौदागर हूं और सपने बेचता हूं’’। राजनीतिक गलियारों में उनकी इस बात को लेकर कई लोगों ने आपत्ति दर्ज की, लेकिन उन्हें कोई नहीं रोक पाया।
जब 2003 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल हो गई तो अजीत जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन लड़े और फिर से लोकसभा में दाखिल हुए। लेकिन, 2008 में उन्होंने संसद सदस्यता छोड़कर मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और एमएलए बन गए। लेकिन, जब 2008 के विधानसभा चुनाव में डॉक्टर रमन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एकबार फिर से वापसी का मौका नहीं दिया तो एक साल बाद अजीत जोगी फिर से 2009 के चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए महासमुंद लोकसभा क्षेत्र पहुंच गए। वे फिर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें भाजपा उम्मीदवार के हाथों ये सीट गंवानी पड़ी।
नई पार्टी बनाई, लेकिन नाकाम रहे छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे अजीत जोगी का विवादों से हमेशा नाता रहा और इसी तरह की एक विवाद की वजह से 2016 में उन्हें कांग्रेस से अलग हो जाना पड़ा। दरअसल, 2014 में प्रदेश के अंतागढ़ में हुए एक उपचुनाव को लेकर एक ऑडियो टेप सामने आया, जिसकी गाज उनके बेटे अमित जोगी पर गिरी और कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। इसी से नाराज होकर जोगी ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी ) के नाम से एक नई पार्टी बनाई और अगला चुनाव कांग्रेस से लड़ने का ऐलान कर दिया। बाद में 2018 के चुनाव में उन्होंने बसपा के साथ मिलकर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा, लेकिन ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाई और कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली। अजीत जोगी अपने अलावा पार्टी को सिर्फ 4 ही सीट दिलवा पाए।