छग के गठन के 20 साल बाद यह पहली बार होगा जब राज्यसभा में छग से विपक्ष की तरफ एक भी सदस्य वहां मौजूद नहीं होगा। छग के इतिहास में इससे बड़ी शर्मनाक बात और कुछ नहीं हो सकती। जब तक विधानसभा में कांग्रेस विपक्ष में बैठी रही, कम से कम उनके दो प्रतिनिधि राज्यसभा जैसे उच्च सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराया करते थे, लेकिन भाजपा की स्थिति बदतर हो चुकी है, कि वे राज्यसभा में अपना एक प्रतिनिधि तक दाखिल नहीं करा पाए।
छग राज्य गठन के बाद प्रदेश में पहली सत्ता कांग्रेस के हाथ ही आई थी। चूंकि विभाजन के फलस्वरूप जो चीजें जैसी मिलनी चाहिए, वैसे ही मिली, लिहाजा पहले तीन साल की बात बेमानी है। असल सत्ता का संग्राम शुरू हुआ साल नवंबर 2003 से जब विधानसभा चुनाव में पासा पलटा और सत्ता पर भाजपा काबिज हो गई। तब कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा। हालात कांग्रेस के पक्ष में नहीं थे, उसके बाद भी कांग्रेस ने 38 सीटों पर कब्जा जमाया और सम्मानजनक विपक्ष की हैसियत से विधानसभा सदन पहुंचे। इसके बाद साल 2008 और 2013 में भी कांग्रेस को भले ही सत्ता नहीं मिली, लेकिन आंकड़ा 35 से नीचे नहीं आया।
विधानसभा में विपक्षी दल होते हुए भी सम्मानजनक संख्याबल होने की वजह से इन 15 सालों में हर बार राज्य सभा की दो सीटों पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। उसके बाद वर्तमान स्थिति भाजपा के लिए बड़ी शर्मनाक है, जब वे एक भी सदस्य राज्यसभा में नही भेज सके। इससे भी शर्मनाक यह है कि राज्य में राज्यसभा सदस्य के लिए भाजपा इस स्थिति में भी नहीं थी कि वे अपनी ओर से प्रत्याशी खड़ा करने का साहस भी जुटा पाते। बीते 15 सालों में कांग्रेस को कम से कम ऐसे दूर्दिन कभी नहीं देखना पड़ा था।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो जीत मिली भी है, उसके पीछे एकमात्र वजह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर थी, जिसकी वजह से 11 में से 9 सीटों पर भाजपा काबिज हो पाई, अन्यथा जो हाल विधानसभा में हुआ, नगरीय निकायों में हुआ और राज्यसभा में जो स्थिति बनी, लोकसभा चुनाव में भी हालात कुछ ऐसे ही होते।