नई दिल्ली. तारीख: 27 फरवरी 2015… दिन: शुक्रवार। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण पर हो रही चर्चा का जवाब दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने यूपीए सरकार के समय साल 2005 में आई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर एक टिप्पणी की थी।
मोदी ने कहा था, “मेरी राजनैतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो.. मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी (यूपीए) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है.. आजादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा.. यह आपकी विफलताओं का स्मारक है, और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा… दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी जब यह बोल रहे थे, तब सदन में जमकर ठहाके लग रहे थे। उनकी यह टिप्पणी यूपीए की इस योजना का मखौल उड़ाती नजर आ रही थी। लेकिन लॉकडाउन के दो महीने जब देशभर में मजदूर वर्ग बेरोजगार होकर पलायन कर रहा था, तब यही एक योजना थी, जिसने ग्रामीण इलाके में मजदूरों को ज्यादा परेशान नहीं होने दिया। लॉकडाउन के शुरुआती 2 महीनों में देश के ग्रामीण इलाकों में 2.63 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिलता रहा। हर परिवार को लॉकडाउन के 60 दिनों में से 17 दिन काम मिला, जो इनके खाने-पीने और जरूरी खर्चों के लिए पर्याप्त था।
2020-21 के मार्च और अप्रैल महीने में मनरेगा के तहत मिले रोजगार की तुलना पिछले साल से की जाए तो ज्यादा अंतर नजर नहीं आता। वित्त वर्ष 2019-20 में 5.48 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत सालभर में औसत 48 दिन का काम मिला था। इस हिसाब से इस वित्त वर्ष के 2 महीनों का आंकड़ा ठीक-ठाक ही कहा जाएगा।
मनरेगा से सबसे ज्यादा फायदे में रहा भाजपा शासित राज्य उत्तरप्रदेश
भाजपा शासित राज्य हो या गैर भाजपा शासित राज्य, हर राज्य में लॉकडाउन के दौरान यह योजना लाखों गरीब परिवारों का सहारा बनी। उत्तर प्रदेश को इस योजना का सबसे ज्यादा लाभ मिला। यहां लॉकडाउन के दौरान 40 करोड़ परिवारों को मनरेगा ने रोजगार दिए। यहां 1091 करोड़ रुपए सिर्फ मजदूरों को मिलने वाले मेहनताने पर खर्च हुए। लॉकडाउन के दौरान ही यूपी में मनरेगा के तहत 43 हजार से ज्यादा काम भी पूरे हुए।
सौजन्य- भास्कर