न्यूज डेस्क– भारतीय सेना अपने पराक्रम और शौर्य के लिए जानी जाती है । लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सेना को बनाने के लिए देश की हर जाति और समुदाय ने अपना योगदान दिया है । आज हम आपको जिस रेजिमेंट के बारे में बताने जा रहे हैं। मौजूदा समय में उसका अस्तित्व नहीं है लेकिन बीच-बीच में इस रेजिमेंट को दोबारा बनाने की मांग उठती है । और इस रेजिमेंट का नाम था चमार रेजिमेंट ।
चमार रेजिमेंट के इतिहास को देखें तो एक मार्च 1943 को मेरठ छावनी में ये रेजिमेंट स्थापित की गई. इससे पहले एक साल तक यह सेकेंड पंजाब रेजिमेंट की 27वीं बटालियन के रूप में ट्रायल के तौर पर थी. 27वीं बटालियन में चमार जाति के जवान ही भर्ती किए गए थे. जब उन्होंने हथियारों की ट्रेनिंग और शारीरिक क्षमताओं में खुद को साबित कर दिया, तब विधिवत तौर पर स्वतंत्र तौर से चमार रेजिमेंट की स्थापना की गई.
चमार रेजिमेंट तत्कालिक ब्रिटिश सरकार की उस नीति के तहत स्थापित की गई थी कि जिन समुदायों की सेना में कभी हिस्सेदारी नहीं रही, उन्हें भी सेना में शामिल किया जाए. इस रेजिमेंट के गठन के कुछ ही दिनों में दूसरा विश्वयुद्ध तेज हो गया, उसका असर एशिया तक पहुंच गया और चमार रेजिमेंट को इसमें उतार दिया गया.
उस समय दलितों की तीन रेजिमेंट ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थीं- महार रेजिमेंट, मजहबी और रामदसिया रेजिमेंट और चमार रेजिमेंट. दूसरे विश्व युद्ध में तीनो रेजिमेंट ने हिस्सा लिया.चमार रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को सबसे पहले गुवाहाटी भेजा गया. असम के बाद इस बटालियन को कोहिमा, इंफाल और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) की लड़ाइयों में तैनात किया गया. दूसरे विश्व युद्ध में इसके कुल 42 जवान शहीद हुए. इन जवानों के नाम दिल्ली, इंफाल, कोहिमा, रंगून आदि के युद्ध स्मारकों में दर्ज हैं. चमार रेजिमेंट के सात जवानों को विभिन्न वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. यही नहीं, इस रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा अवार्ड भी दिया गया.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद महार रेजिमेंट को तो बनाए रखा गया, वहीं मजहबी एंड रामदसिया रेजिमेंट का नाम बदलकर सिख लाइट इनफेंट्री कर दिया गया. लेकिन चमार रेजिमेंट को 1946 में भंग कर दिया गया. इस रेजिमेंट को भंग करने का विरोध हुआ और इसे फिर से बहाल करने के लिए आंदोलन शुरू हो गया. रेजिमेंटल दफेदार जोगीराम जी के नेतृत्व में इसके 46 जवानों ने विद्रोह कर दिया और इसे बहाल करने के लिए आंदोलन करने के कारण उन्हें जेल की सजा भी हुई. चमार रेजिमेंट को फिर से बहाल किए जाने की मांग का बुनियादी आधार ये है कि भारत की लोकतांत्रिक सरकार ने जातियों और समुदायों के नाम पर रेजिमेंट बनाने की ब्रिटिश इंडियन आर्मी की परंपरा को जारी रखा है. अगर भारत में आज जाति या समुदाय के आधार पर कोई टुकड़ी नहीं होती तो चमार रेजिमेंट की मांग नहीं होती. लेकिन अब जबकि जाति आधारित किसी रेजिमेंट को आजाद भारत में भंग नहीं किया गया और ऐसा करने का कोई प्रस्ताव भी नहीं है तो कोई कारण नहीं है कि चमार रेजिमेंट को फिर से क्यों न बनाया जाए.
अहीर रेजिमेंट की मांग हो या चमार रेजिमेंट को फिर से खड़ा करने की मांग, इसका आधार खुद भारत सरकार ने मुहैया कराया है. अगर जाति के आधार पर सेना को संगठित करने का आधार यह है कि इससे टुकड़ियों में एकरूपता रहती है, तो इस आधार पर चमार रेजिमेंट को बहाल करने की मांग को कैसे खारिज किया जा सकता है. खासकर जब एक बार चमारों को मार्शल कौम मान लिया गया है और सेना के गठन में मार्शल कौम के सिद्धांत को खारिज नहीं किया जाता, तब तक चमार रेजिमेंट की मांग बनी रहेगी. अब यह सरकार पर है कि वह इस मांग का क्या करती हैं और अगर वह इसे खारिज करती है, तो इसके लिए वह कौन से कारण बताती है.