इंसान चाहे कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए। लेकिन यादें हमेशा जवान रहती है। फिर चाहे वो कोई अभिनेता हो,राजनेता हो, कोई हस्ती हो या फिर आम इंसान। हर इंसान के जीवन में एक दौर आता है जो उसे कभी भी नहीं भूलता। गुजरा दौर याद करके हम अपने आज को भूल जाते हैं। थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन वो बीता कल हमारे सामने बिल्कुल सजीव सा आ जाता है। लाख मन को रोके बिना हम फिर से उस गुजरे कल मे चले जाते हैं।वो बीता समय जो लौटकर कभी नहीं आएगा लेकिन मौजूदा समय में जो भी परिस्थितियां हमारे सामने आई वो बीता कल फिल्मी फ्लैशबैक की तरह हमारे सामने रुपहले पर्दे के रूप में आ गया। रायपुर के एसएसपी आरिफ शेख की फेसबुक पेज पर आपको एक लेख देखने को मिलेगा । पहली लाइन पढ़ने के बाद कब आप इसकी आखिरी शब्द तक पहुंच जाएंगे यकीन मानिए आपको पता नहीं चल पाएगा। इस लेख में गुजरा कल है। बीती यादें हैं । संघर्ष का किस्सा है। बचपन की गुदगुदाहट है और हां सबसे जरुरी बात आने वाले कल के लिए खुद को तैयार रखने की सीख है। तो आप भी पढ़िए इस लेख को हमारे माध्यम से ।
नीचे पढिए पूरा लेख हू-ब-हू
#PoliceCampDiaries #chapter3
चमन बहार , फूल छाप और सौदागर
नेटफ्लिक्स पर कल दोपहर “चमन बहार” देखी तो पुलिस कैम्प वाले ऐसे ही एक पान ठेले “फुलछाप” की याद आ गई, काम की भाग दौड़ में मैं इसके बारे में ज्यादा सोच ना सका। बीती रात मेरे 6 साल के बेटे का एक दूध वाला दांत टूट गया जिस कारण से वो बिलबिला के रो रहा था, उसको चुप कराने के लिए उसकी मम्मी ने tooth fairy नामक कहानी सुनाई, चुप रहने और बिना रोये सोने के बदले में उसने tooth फेयरी से बोहोत छोटीसी wish की ,सुबह उठते ही उसको चाहिए था एक Avengers Hulk, Kinder joy और एक बड़ी Cadbury Silk.अब सुबह होने से पहले उसको ये देना ही था क्योंकि उसके बाकी के दांतों का भी जल्द ही नम्बर लगने वाला था और toothfairy रूपी परी की हमको और सेवाएं लेनी थी।सुबह 6 बजे उठ कर मैं खुद ही(मास्क पेहेनके ?) ये Kinder joy खरीदने दुकान में गया तो दुकान बन्द मिला। अब खाली हात तो लौटना नही था , रास्ते मे एक पान का ठेला खुला मिला..लगा ये चीज़ यहां नही मिलेगी लेकिन फिर भी पूछा कि क्या kinder joy है? उसने तड़ाक से उत्तर दिया girl वाला या boy वाला ?..तब मुझे एहसास हुआ कि चाहे कोई भी आर्थिक आपदा आये ये ठेले ही हमारी economy को लंगर देंगे। इस ठेले के सुखद एहसास के साथ ही मैं फिर से फूल छाप की यादों में खो गया.. #PoliceCampDiaries #chapter3
पुलिस कैम्प में म्युनिसिपल कन्याशाला के सामनेवाले मैदान में हम क्रिकेट खेला करते थे। ठीक उसके सामने एक पान की छोटी सी टपरी (ठेला) था (आज भी है) जिसका नाम ना जाने क्या था लेकिन हम उसको “फूल छाप” ही बोलते थे(जो तम्बाखू का एक ब्रांड है)। यह जगह एक common अड्डे के तौर पर कुप्रसिद्ध हो चुकी थी (चमन बहार टाइप)।कैम्प के सभी लौंडे लपाटे यहां आके पूरी तफरी करते थे। पान, गुटखा, तम्बाखू,बीड़ी, सिगरेट की छोटीसी शुरूवात कर यह ठेले ने कुछ ही दिनों में एक general store & Cafe का रूप ले लिया था। मराठी में ऐसे पान बीड़ी के ठेलो को “गादी” कहते है। मेरे बोहोत सारे दोस्तो को भी फुलछाप में जाकर “मावा” खाने का नवाबी शौक चढ़ रहा था, वैसे तो बचपन से अब तक मैंने कोई बीड़ी, सिगरेट या गुटखा नही खाया (अब्बा का डर ?) हैं लेकिन knowledge सब है ?। मेरे अब्बा के लिए मैं हमेशा यहाँ से बनारस120,300 कच्ची सुपारी पान( ठंडक और इलायची डाल के )लाया करता था। वो 2 रुपये देते थे 1.5 रु का पान लेने पर भी .50 पैसे मेरे रहते थे जिससे भरपूर टॉफियां या ऎसी ही अंट शंट चीज़े खा सकते थे
फुलछाप में मिलने वाली बोहोत सारी चीजों में से बच्चो के पसंदीदा टॉफियों में थे Try me, coffee bite, Paan Pasand, White rabbit, Lacto King ,melody ,eclairs, big boomer और chicklets ये सब 25 पैसे से आठ आने में मिलते थे। फुलछाप में इनका उल्हासनगर वाला हूबहू डुप्लीकेट माल भी मिलता था जो मात्र 10 पैसे का था, ज्यादा दोस्त आने पे यही ले के खाते थे।फुलछाप की खास बात थी वहां लकी ड्रा वाली टॉफिया जिनका नाम उस वक्त के सुपरहिट फिल्मों पर आधारित था जैसे अजूबा, दिल, सौदागर, तूफान, खिलाड़ी,कमांडो। इनमे से कुछ फिल्में फ्लॉप रही होंगी लेकिन ये टॉफियां काफी सुपर हिट थी। लकी ड्रा 2 टाइप के थे, एक जिसमे on the spot इनाम मिलता था और दूसरा जिसमे एक logbook मिलती थी टॉफी खरीदने पर उसमे एक नम्बर के हिसाब से पोस्टर का एक छोटा पार्ट मिलता था। पूरा पोस्टर बनाने पर इनाम मिलता था। लेकिन इन दोनों स्कीमों में काफी बर्बादी होती थी(समय के और पैसे दोनों की)…टॉफी का घटिया टेस्ट होता था और एक ही नम्बर बार बार मिलता था, जो लकी नंबर है वो बड़ी मुश्किल से निकलता था।
On the spot लकी ड्रॉ में मैं काफी लकी साबित हुआ था , मेरा success रेट इसमे ज्यादा था, मैंने इसमे Dance dance, Hasan Jahangir, Saudagar अल्बम की ऑडियो कैसेट जीती थी। साथ ही cork ball, पेन, keychain, topi ये सब मात्र 25 पैसे में जीता था। कुछ दोस्त तो अपनी टॉफी भी मुझसे ही खुलवाते थे ताकि कुछ मिल जाये।शायद Fukrey का चूचा मुझसे ही inspired है ?।
भीड़ होने पर दुकान से” सौदागर या दिल” खरीदना बेहतर होता था क्यो की एक टॉफी बोल के बच्चे 2 उठाते थे।पकड़े जाने पर वही हाल होता था जिसको ना बताना ही ठीक है।
फुलछाप में टॉफियों के साथ तरह तरह की मीठी सुपारी ,सौफ, माउथ फ्रेशनर जैसे मिलन, रसीली, भावे, टिक टैक् इत्यादि मिलते थे। मसाला पान का आस्वाद मैंने उसी समय से लेना शुरू किया और आज भी अच्छा खाने के बाद मैं कभी कभी मसाला पान खाना पसंद करता हु। अजीबोगरीब चीजे जिसे हम वहां से लेते और खाते थे उसमे से मुझे बोरकुट (सूखे बेर का पाउडर), चूहे की चूरन गोली, काला नमक, खट्टा मीठा, ब्रेड के छोटे गुलाब जामुन, इमली की तरह तरह की टॉफियां, सूखा आम पाउडर काफी पसंद था जो ताजा जामुन और कच्चे आम के साथ और भी स्वादिष्ट लगते थे।
उसी समय 91-92 में कुछ और ऐसी लकी ड्रा स्कीम आयी थी। Cadbury की Choco-Mania और बाद में फिर Dollops icecream की wallops। Choco-mania में तो मैंने और मेरे भाई ने लगभग सभी इनाम ले लिए थे जैसे जादू का ग्लास,जादू के पत्ते, Vampire’s teeth, नकली दाढ़ी मूछ। इसमे बड़ी कैडबरी के wrapper के 2 पॉइंट थे और छोटी के 1पॉइंट, 5 पॉइंट में एक छोटी कैडबरी मिलती थी। ये रेपर जमा करना भी बड़ा tedious था। इनाम तो मुझे सभी लेने थे लेकिन इतने पैसे नही थे कि चॉकलेट खरीदकर इतने रेपर इकट्ठा करू। तो भाई, हम लोग एक टोली बना के गली, कूचे, मोहल्ले घूमते थे और कचरे में , गटर में, यहां वहां पड़े हुए रेपर इकट्ठा करते थे। मैले रैपर को धोते थे उसको प्रेस कर नया करते थे। हमको देख के ये कोई नही कह सकता था की हम किसी पुलिस सब इंस्पेक्टर के बच्चे है, सब सोचते थे ये कचरा बीनने वाले है?।काफी सोचकर मैंने हमारी बिल्डिंग में जो कचरा उठाने आते थे “भालेराव काका” उनसे एक करार किया, वो दिन भर में 20 बिल्डिंग का कचरा उठाते थे तो मैंने उनसे कहा कि अगर रोज़ वो कैडबरी wrapper ढूंढकर मुझे देंगे तो बदले में मैं उनको हफ्ते में एक कैडबरी दूंगा, बस मैं इस करार के बाद सबसे अमीर बन गया और मैंने पूरी Choco mania scheme में एक भी गिफ्ट नही छोड़ा
उन दिनों संसाधनों की बेहद कमी थी..लेकिन वही दौर था जिसने मुझपे संस्कार किये ।शायद compete करने के यही जज़्बे ने विषम परिस्थिति में भी मुझे लड़ना सिखाया जिसके वजह से मैं आज यहां तक पोहचा हु and I’m still firmly grounded to my roots.
मिले जो उसकि ख्वाहिश किसे है…तमन्ना तो उसकी है जो किस्मत में नही।