दंतेवाड़ा। मानसून की दस्तक के साथ ही बस्तर मलेरिया की चपेट में आ जाता है, यहां पर यह एक परंपरा बन गई है। विगत एक दशक से इस समस्या से यहां के रहवासियों के साथ ही पदस्थ स्वास्थ्य अमला भी लगातार जुझ रहा है, पर मच्छरों और उससे जनित मलेरिया का समाधान नहीं हो पा रहा है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं करते। जिम्मेदारी का ऐसा जज्बा, उनके लिए स्वाभाविक तौर पर सम्मान बढ़ा देता है।
दरअसल अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार करती दिख रही यह महिला एएनएम है, जो साथी डॉक्टरों के साथ बस्तर को मलेरिया मुक्त करने निकली है। जिस तेज बहाव पानी में लोग पैर रखने से भी डरने है, वहां कमर भर पानी को चलकर पार करती नजर आती है। यह नजारा दंतेवाड़ा जिले के घनघोर नक्सल प्रभावित अरनपुर इलाके का है।
तस्वीर में नजर आने वाली महिला एएनएम पिंकी भदौरिया है, वो उपस्वास्थ्य केंद्र पोटाली के डॉक्टर अतीक अंसारी, स्वास्थ्य कर्मी गोविंद झुर्री चंद्रशेखर और अपनी टीम के साथ मेडिकल कैम्प के लिए रेवाली गांव निकली थी। अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना था। जंगल इलाका होने की वजह से उन सभी को 5 किमी पैदल ही चलना था। कंधे पर दवाईयां, फिर कमर के बराबर से तेज बहाव में बह रही मलगेर नाले को भी पार करना था। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारा, एक दूसरे का हौसला अफजाई कर, जान जोखिम में डालकर एक दूसरे का हाथ थामें पैदल ही नदी को पार किया।
इन सब चुनौतियों को पार कर स्वास्थ्य टीम रेवाली गांव पहुंची, जहां मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान के तहत स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। ग्रामीण मलेरिया स्वास्थ्य समिति का गठन कर गांव की मुखिया बैगा गुनिया को शामिल कर कई आदिवासियों को इकठ्ठा किया। स्वास्थ्य टीम ने गांव में मलेरिया से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग। नीम के पत्ते का धुआ करना और गड्ढों को भरने का सुझाव दिया।
इस दौरान रेवाली गांव के 65 घरों में 286 ग्रामीणों की जांच की गई, जहां 13 लोग मलेरिया पॉजिटिव मिले। इसके साथ ही टीम ने 15 साल से 49 वर्ष की महिलाओं का एनीमिया मुक्त बस्तर अभियान के तहत हेमोग्लोबिन का भी जांच किया।