छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में ग्रामीण हाथियों के कानून का पालन करते हैं। वह मानते हैं कि हाथी साथी भी है और जज्बाती भी। हाथी सामाजिक प्राणी है। समूह में रहता है। अपने बुजुर्ग को मुखिया मानता है। हथिनियों और बच्चों की रक्षा करता है। लोगों में यह भी मान्यता है कि हाथी यदि गुस्से में हिंसक हो जाता है तो पश्चाताप भी करता है। किसी मनुष्य की हत्या करने वाले हाथी को दल से बहिष्कार का दंड भी भुगतना पड़ता है। इसलिए हाथियों के काम में दखल नहीं देने में ही अपनी भलाई मानते हैं।
तुमला निवासी गणेश सिंह के अनुसार प्रत्येक समूह का सबसे उम्रदराज हाथी दल का नेतृत्व करता है। दल के सदस्य अनुशासन में रहते हैं। हाथी बिना किसी कारण मनुष्य पर हमला नहीं करते हैं। आत्मरक्षा के लिए जरूर आक्रामक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि अगर कोई हाथी किसी मनुष्य को कुचल कर मार देता है तो उसे दल से अलग कर दिया जाता है।
दल से बेदखल हाथी हो जाता है आक्रामक हालांकि, विशेषज्ञ और वन विभाग के अधिकारी इन मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते। जशपुर के डीएफओ एसके जाधव के अनुसार दल में रहने के कारण हाथी अपेक्षाकृत शांत होते हैं। किसी हथिनी के गर्भवती होने की स्थिति में उसकी सुरक्षा के लिए हाथी अधिक सतर्क होतें हैं। कई बार आक्रामक भी हो जाते हैं। इनकी अपेक्षा दल से अलग हुआ हाथी अधिक आक्रामक होता है। खेत और घर को बेवजह नुकसान पहुंचाता है और मनुष्य पर भी हमला करता है। हथिनियों से जोड़ी बनाने के लिए संघर्ष दल से अलग होने का कारण होता है।
धरती के लिए वरदान हैं हाथी हाथियों का सीधा संबंध पर्यावरण से है। पिछले साल हाथियों के धरती से संबंध को लेकर एक अध्ययन सामने आया था। इसमें वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि यदि इस धरती को बचाना है तो सबसे पहले हाथियों को बचाना होगा। यदि धरती से हाथी विलुप्त हो गए तो हमारा वातावरण और जहरीला हो जाएगा।