केंद्र सरकार के पांच राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश की 41 कोल ब्लॉक को वाणिज्यिक खनन के लिए देने के फैसले के खिलाफ कोल इंडिया की गुरुवार से शुरू हुई तीन दिवसीय हड़ताल के बीच इस मुद्दे पर राज्य की हेमंत सरकार व भाजपा दो-दो हाथ करने की तैयारी में हैं। राज्य सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा ही चुकी है, हेमंत सोरेन व्यक्तिगत स्तर पर भी गैर भाजपा शासित उन सभी राज्यों से संपर्क साध कर उन्हें लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने हैं।
इसको लेकर भाजपा हेमंत को अपरिपक्व व विकास विरोधी बताकर घेर रही है और तमाम सवाल दाग रही है। दोनों तरफ से वार-पलटवार हो रहे हैं, लेकिन कोई भी दल इस बात पर चर्चा नहीं कर रहा, आखिर क्या कारण रहे कि खनिजों से भरपूर इस राज्य के लोग अभी भी घोर गुरबत में जी रहे? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? बारी-बारी से दोनों दलों की यहां सत्ता रह चुकी है तो फिर क्या उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती है? जरूरत है मौजूदा सरकार ऐसे तमाम अनुत्तरित सवालों के तह में जाए और उनका समाधान करे, लेकिन फिलहाल इसके ठीक विपरीत होता दिख रहा है।
राज्य में जो नौ कोल ब्लॉक चिन्हित किए गए हैं, उनके बारे में अनुमान है कि उनमें 2,286 मिलियन टन कोयला सुरक्षित है। इन कोयला खदानों से कोयला निकालने के लिए 5,487 करोड़ रुपये पूंजी निवेश की जरूरत होगी और यहां प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर पचास हजार से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया होंगे। इन खदानों से राज्य को हर साल करीब 3,241 करोड़ रुपये का राजस्व भी मिलेगा। कोल ब्लॉक आवंटन से आने वाला सारा राजस्व भी संबंधित राज्य का हिस्सा होगा।