रिपोर्ट: लाला सिंह ठाकुर, बेमेतरा
बेमेतरा। जिला मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर स्थित देवकर से महज 7 किमी की दूरी पर स्थित सहसपुर में सैकड़ों साल पुराने इतिहास के साथ एक शिवालय आज भी अपनी ऐतिहासिकता का प्रमाण दे रहा है। इस मंदिर से जुड़ी कहानी अपने आप में आश्चर्यजनक है। कई चमत्कारिक घटनाओं का साक्षी यह मंदिर आज आस्था और विश्वास का केंद्र है, जहां सालभर लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते रहते हैं।
सावन मास में यह स्थल मेला का स्वरूप ले लेता है। यहां मिले शिलालेखों के आधार पर बताया जाता है कि कालांतर में फनी नागवंशी राजाओं के शासन काल में यहां निर्मित जुड़वा मंदिर में हजारों गैलन पानी से जलाभिषेक किया गया, लेकिन शिवलिंग नहीं डूबा। संचालको के अनुसार फनी नागवंशी राजाओ के शासनकाल में निर्मित यह जुड़वां मंदिर प्रतिनिधि स्मारकों में से एक है। मान्यता है कि कवर्धा के फनी नागवंशी राजाओ ने 13-14 वी शताब्दी में इसे बनवाया है।
किवंदती हैं कि गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग कभी नहीं डूबता हैं। आठ दशक पहले गांव में भीषण अकाल पड़ा। इससे आहत सहसपुर ,नवकेशा, लालपुर, बुंदेली, गाढ़ाडीह सहित आसपास क्षेत्र के गामीणो ने महाशिवरात्रि के दिन गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग को जलाभिषेक कर डूबाने का निर्णय लिया था। योजना के मुताबिक मंदिर परिसर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जलाभिषेक किया गया। सुबह से शाम तक शिवलिंग पर हजारो गैलन जल चढ़ाया गया, लेकिन शिवलिंग को जल से डुबोने का प्रयास असफल रहा। हजारो गैलन पानी कंहा गया किसी को पता नहीं चला। तब गांव वालों को बात समझ आई कि शिवलिंग को पानी से डूबने का निर्णय एक अहंकार था। इसके बाद से गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग की आस्था बढ़ती चली जा रही हैं। तब से हर साल महाशिवरात्रि में मेला लगता है। आसपास के ग्रामीण शिवलिंग का जलाभिषेक करने पहुँचते हैं। परंपरा के मुताबिक अभी भी श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह से जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जलाशय के पानी से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग मंदिर के धरातल पर गर्भ गृह में 3 फिट नीचे है। मंदिर का छत कला से अंतरित हैं। मंदिर के बाहर के बाहरी हिस्से में नटराज शिव और दांयी ओर चतुर्भज की गणेश कि भित्ति चित्र हैं। यह नृत्य की मुद्रा में है। सावन माह शुरू होते ही यहां दर्शन को श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है। यह देवकर से 7 किलोमीटर दूरी पर सहसपुर का प्राचीन मंदिर है।देवकर नवकेसा होते हुए सहसपुर पहुँचाया जा सकता हैं। जुड़वां मंदिर पूर्वाभिमुखी हैं। एक मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित हैं। दूसरे में प्रतिमा नही थी ।बाद में गांव वालों ने हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की है। मंदिर में अंतराल गर्भ गृह और मण्डप हैं। नागर शैली में आमलक एवम कलश युक्त शिखर है। मण्डप का धरातल गर्भ गृह से लगभग 8 फीट ऊंचा हैं।शिव मंदिर के मंडप में पत्थर से बने कालम हैं। प्रत्येक कालम में नाग उकेरे गये हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार में चतुर्भज शिव एवम दांये छोर पर ब्रम्हा जी और बांये छोर पर विष्णु की प्रतिमा विराजमान हैं। नीचे में नवग्रह विपरीत क्रम में अंकित है।गर्भ गृह में जलधारी शिवलिंग हैं। दरवाजे की कलाकृति भोरमदेव मंदिर कबीर धाम कवर्धा समान है।भोरमदेव मंदिर की तरह बाहरी हिस्से पर कोई कलाकृति नही है।