कानपुर। आठ पुलिस वालों को मौत की नींद सुलाने के बाद कुख्यात हत्यारा विकास दुबे 6 दिनों तक फरारी काटता है, सातवें दिन नाटकीय ढंग से उज्जैन के महाकाल मंदिर में वह आत्मसमर्पण करता है, आठवें दिन सुबह उसका कानपुर से 15 किमी पहले एनकाउंटर हो जाता है। इस मामले में कहा जाता है कि वह भागने के फिराक में था, उसने पुलिस पर एक बार फिर गोलियां दागी, लेकिन इस बार उसके हमले से पुलिस वाले केवल घायल होते हैं और पुलिस की गोलियां विकास के सीने को छलनी कर जाती है।
दरअसल विकास दुबे के कोर्ट में पेश किए जाने के बाद कई राज सामने आ सकते थे, जिसमें वर्दीवालों के नाम और सफेदपोशों के राज छिपे हुए थे। उसकी गिरफ्तारी कई नामजद और प्रतिष्ठित लोगों की कलई खोल सकती थी, यह बात सही मायने में नौकरशाहों और राजनेताओं के गले नहीं उतर रही थी, अतंतः परिणाम सामने है।
भारी बारिश की वजह से उसे जिस वाहन से लाया जा रहा था, उसका पलट जाना लाजिमी है, लेकिन विकास ने भागने की कोशिश की, उसके हाथ में पिस्टल भी आ गया, उसने 8 किमी तक एसटीएफ के जवानों को अपने पीछे भगाया, जैसा वाकया सही मायने में पच नहीं पा रहा है।
आपको बता दें कि महज 11 साल में विकास दुबे ने राजनीति, नौकरशाही और खासतौर पर पुलिस वालों के बीच जिस तरह की पैठ बनाई थी, मामूली से व्यापारी से वह एक गैंगस्टर बन गया और अकूत संपत्ति का जो मालिक बन बैठा, उसमें कई सफेदपोश और नौकरशाहों का हाथ होने के साथ, उसके साथ साठगांठ की भी कहानी दफन हो गई हैं।
उत्तर प्रदेश में वह बाहुबली बन गया था, शराब माफिया, जमीन कब्जा, एक्ट्रारेशन, अपहरण जैसे कई संगीन अपराधों के साथ हत्या के कई मामलों में उसका हाथ था। कई राजनीतिक हत्याओं को उसने अंजाम दिया था, जो सफेदपोशों के इशारे पर उसने किए थे। उसकी गिरफ्तारी इन सब में संलिप्त लोगों के लिए गले की हड्डी बन गई थी।
एनकाउंटर ही था लक्ष्य
कानपुर में डीएसपी सहित 8 पुलिस वालों को जब उसने कत्ल किया, उसके बाद वह फरार हो गया और उसकी तलाश में 40 टीम जब लग गई, तब ही एनकाउंटर का लक्ष्य निर्धारित हो गया था। लेकिन उज्जैन में उसका आत्मसमर्पण कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा था। आज सुबह कानपुर से ठीक पहले एसटीएफ की गाड़ी का पलटना और फिर उसका एनकाउंटर होना इसका प्रमाण है।