नई दिल्ली। दुनियाभर में विशेष वर्ग की पसंदीदा व्हिस्की जाॅनी वाॅकर अब नए स्वरूप में बाजार में आने वाली है। इसके निर्माण में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा रहा है, बस पैकिंग में बदलाव कर बाजार में उतारने की मुहिम जारी है। इसके पीछे वजह प्रदूषण है, जिसे कंपनी कम करना चाहती है। यही वजह है कि अब जाॅनी वाॅकर को शीशे की बोतल की जगह कागजों की बोतल में भरकर बाजार में पेश किया जाएगा।
कंपनी का कहना है कि वह पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाए गई पैकेजिंग का ट्रायल अगले साल से शुरू करेगी। जॉनी वॉकर व्हिस्की आमतौर पर शीशे की बोतल में ही बिकती है, लेकिन कंपनी का कहना है कि वो अपने सभी ब्रांड में प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करने पर जोर दे रही है। शीशे से बोतल बनाने में भी ऊर्जा खर्च होती है और इससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है। पेपर की बोतलें बनाने के लिए कंपनी पल्पेक्स नाम की एक और फर्म बनाने जा रही है। ये कंपनी पेप्सिको और यूनीलीवर जैसे ब्रांड के लिए भी कागज की बोतले तैयार करेगी।
कंपनी का कहना है कि उसकी पेपर की बोतल वुड पल्प (लकड़ी की लुगदी) से बनेगी और इसका परीक्षण 2021 में किया जाएगा। इन बोतलों को पूरी तरह से रिसायकल किया जा सकेगा। कंपनी को उम्मीद है कि ग्राहक इन्हें सीधे रिसायकल करने के लिए भेज सकेंगे। पेय कंपनियां प्रदूषण कम करने के लिए पेपर की बोतले बनाने पर जोर दे रही हैं। बीयर कंपनी कार्ल्सबर्ग भी पेपर की बोतलें बनाने की प्रक्रिया में है। हालांकि दुनिया की बड़ी पेय उत्पाद कंपनी कोका कोला का कहना है कि वो प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल बंद नहीं करेगी क्योंकि ग्राहक अभी भी इन्हें पसंद करते हैं।
डियाजियो का कहना है कि उसकी बोतले पल्प को खांचे में दबाव डालकर और फिर माइक्रोवेव में सेककर बनाई जाएंगी। इन बोतलों में अंदर से परत चढ़ाई जाएगी जो ये सुनिश्चित करेगी कि पेय पदार्थ कागज से ना मिले। कई कार्टन जो कागज से बनते हैं उनमें अंदर से प्लास्टिक की परत होती है ताकि पेय पदार्थ बाहर न निकले, लेकिन डियाजियो का कहना है कि उसकी बोतलों में किसी भी तरह से प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पर्यावरण को हो रहे नुकसान की वजह से कंपनियों पर उत्पादों की पैकिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने का दबाव है। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ यूरोप में ही साल 2018 में खाद्य और पेय पदार्थों की पैकिंग में 82 लाख टन प्लास्टिक इस्तेमाल की गई थी। डियाजियो का कहना है कि वो अपनी पैकिंग में पांच प्रतिशत से भी कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करती है। हालांकि शीशे की बोतलों के निर्माता उत्पादन में ऊर्जा के कम खर्च पर जोर दे रहे हैं लेकिन अभी भी वे बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करते हैं. शीशा पिघलाने वाली भट्टियों के संचालन में भारी मात्रा में ऊर्जा खर्च होती है। अधिकतर भट्टियां प्राकृतिक गैस से चलती हैं। इनमें रेत और चूने को पिघलाया जाता है।