डेस्क। सावन महीना लगते ही त्योहारों की भी शुरुवात हो जाती है। इसमें से खूब खुशियों के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है हरेली, जिसे हरियाली अमावस भी कहा जाता है। कल, सोमवार को हरेली त्योहार पूरे रीति रिवाजों के साथ मनाया जाएगा। यह त्योहार छत्तीगढ़ की परंपरा का बखान करता है आइये जानें हरेली त्योहार के बारे में।
सावन माह के कृष्ण पक्ष अमावस्या में मनाए जाने वाला हरेली पर्व राजधानी सहित पूरे प्रदेश में परंपरागत तरीके से हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में हर जाति के लोग हरियाली अमावस्या को अपने खास तहर और रिवाजों के साथ मानते है। हरेली पर्व में अन्नदाता बैलों और हल सहित विभिन्न औजारों की विशेष पूजा करने के बाद खेती-किसानी का काम शुरू करते हैं।
इस दिन गांव और शहर में यादव समाज के लोग घर के मुख्य दरवाजा और वाहनों पर नीम की डालियां बांधकर पर्व की बधाई दे रहे हैं। इसी तरह विश्वकर्मा समाज के लोग दरवाजे पर कील लगाते हैं, और निषाद समाज जाली का टुकड़ा बांधते हैं। मान्यता है कि इससे बुरी आत्माओं से घर की रक्षा होती है। गांव में इस दिन घरों को गोबर से लीपा जाता है। दीवारों पर गोबर से आकृति भी की जाती है।
आज के दिन से ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में हरेली पर्व में अन्नदाता बैलों और हल सहित विभिन्न औजारों की विशेष पूजा करने के बाद खेती-किसानी का काम शुरू करते हैं। वहीं, बच्चों में भी इस पर्व को लेकर खास उत्साह दिख रहा है। बांस की गेड़ी बनाई जाती है। बच्चे इस पर चढ़कर चलते हैं। वहीं, कहीं-कहीं गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता भी रखी जाती है। इसके आलवा गांवों में बैल दौड़ प्रतियोगिता भी होता है। राजधानी के बारियाखुद में गेड़ी दौड़ के अलावा गेड़ी में चढ़कर फुटबाल खेला गया। जिसे देखने के लिए काफी संख्या में लोग उपस्थित थे।