नई दिल्ली। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ जारी तनातनी के बीच भारत लगातार अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। इसी कड़ी में लद्दाख में राफेल लड़ाकू विमानों को भी तैनात किया जा सकता है। देश की वायु सुरक्षा व्यवस्था की गहराई से समीक्षा करने के लिए बुधवार से शुरू हो रहे वायु सेना के शीर्ष कमांडरों की कांफ्रेंस में राफेल लड़ाकू विमानों को लद्दाख में तैनात करने पर फैसला किया जा सकता है। इस महीने के अंत तक फ्रांस से राफेल विमानों की पहली खेप मिलने वाली है।
भारतीय वायु सेना के अधिकारियों ने बताया कि शीर्ष कमांडरों की 22 जुलाई से तीन दिवसीय कांफ्रेंस शुरू हो रही है। वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया की अध्यक्षता में होने वाली इस कांफ्रेंस में उनके सभी सात कमांडर-इन-चीफ भी शामिल होंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस कांफ्रेंस को संबोधित कर सकते हैं।कांफ्रेंस के मुख्य एजेंडे में पूर्वी लद्दाख के हालात पर चर्चा तो है ही, चीन से लगती अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड की सीमा के साथ वायु सेना की ताकत को मजबूत करने के उपायों पर भी व्यापक विचार विमर्श किया जाएगा। एलएसी चीन से लगती वह सीमा है जिसका अभी तक सटीक निर्धारण नहीं किया जा सका है।
सूत्रों ने बताया कि अधिकारियों की बैठक में फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान को प्राप्त करने की तैयारियों पर चर्चा होगी। माना जा रहा है कि राफेल के पहले स्क्वाड्रन को अंबाला एयर बेस पर तैनात किया जाएगा, जो रणनीतिक रूप से वायु सेना का बहुत ही अहम बेस है। भारत ने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 60 हजार करोड़ रुपये का सौदा किया है।
राफेल के दो स्क्वाड्रन से बढ़ेगी ताकत
राफेल के दो स्क्वाड्रन से न सिर्फ वायु सेना में लड़ाकू विमानों की कम होती संख्या पर रोक लगेगी, बल्कि इससे लंबी दूरी तक हमला करने की उसकी क्षमता भी बढ़ जाएगी। एक स्क्वाड्रन में 15 से 18 विमान होते हैं।