नई दिल्ली। हिमालय में मिलने वाला कीड़ाजड़ी एक दुर्लभ औषधि है. इसकी कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 20 लाख रुपए किलो है. स्थानीय ग्रमीणों द्वारा लगातार हो रहे दोहन से इसकी उपलब्धि में 30 फीसदी गिरावट आई है. अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है.हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली हिमालयन वियाग्रा कीड़ाजड़ी या यारशागुंबा जाना जाता है. संरक्षण-संर्वधन के लिए राज्य सरकार की मदद से कार्ययोजना पर विचार चल रहा है
कैंसर समेत कई गंभीर रोगों में कारगर कीड़ाजड़ी 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में मिलती है। यह भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान में हिमालय और तिब्बत के पठारी इलाकों में मिलती है। उत्तराखंड में यह पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मिलती है। मई से जुलाई के बीच जब पहाड़ों पर बर्फ पिघलती है तो सरकार की ओर से अधिकृत 10-12 हजार स्थानीय ग्रामीण इसे निकालने वहां जाते हैं।
करीब दो माह रुककर इसे इकट्ठा किया जाता है। वन अनुसंधान केंद्र ने जोशीमठ क्षेत्र में अपने हालिया शोध में पाया है कि कीड़ाजड़ी की उपलब्धता तेजी से घट रही है। बीते 15 वर्षों में इसकी उपलब्धता में 30 फीसदी तक गिरावट आ चुकी है। विशेषज्ञ उपलब्धता में गिरावट की वजह लगातार दोहन, जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं। इसके बाद आईयूसीएन ने खतरा जताते हुए इसे संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है।
क्या है कीड़ाजड़ी
यह एक तरह का जंगली मशरूम है, जो एक खास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उसके ऊपर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर यह उगता है, उसे हैपिलस फैब्रिकस कहते हैं। स्थानीय लोग इसे कीड़ाजड़ी कहते हैं, क्योंकि यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी है। चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा भी कहा जाता है।
कीड़ाजड़ी का सबसे बड़ा बाजार चीन है। कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि पिथौरागढ़ से काठमांडू के रास्ते कीड़ाजड़ी बड़ी मात्रा में चीन भेजी जाती थी। वहां इसकी कीमत 20 लाख रुपये प्रति किलो तक है। मगर इस बार पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन, फिर चीन के साथ तनातनी ने कीड़ाजड़ी का धंधा ठंडा कर दिया।