रायपुर। भाजपा विधायक एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ के तेंदूपत्ता संग्रहण से जुड़े आदिवासी परिवारों के विभाग के लापरवाही के चलते समय पर बीमा के नवीनीकरण न होने उन्हें , दो सालों के बोनस का वितरण ना होने दो सालों का लाभांश की राशि नहीं मिलने व उनके बच्चों को दो सालों का छात्रवृत्ति नहीं दिए जाने के मामले को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आज एक पत्र लिखा है।
उन्होंने पत्र में कहा है कि , छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता के कार्य से जुड़े भोले-भाले आदिवासी परिवारों के साथ पिछले 18 महीनों में व्यापक अत्याचार व आर्थिक शोषण हो रहा है। सरकार उनकी हक के चीजों पर लगातार या तो कटौती कर रही है या उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रही है। शायद वन विभाग व वन विभाग से जुड़े संघों द्वारा आपको भी अंधेरे में रखकर आदिवासियों के शोषण में आपको बराबर का भागीदार बनाया जा रहा है।
उन्होंने पत्र में लिखा हैकि प्रदेश के तेंदूपत्ता संग्राहको का बीमा होता था, जिसकी नवीनीकरण की अंतिम तिथि 31.05.2019 थी, किंतु विभाग के द्वारा लापरवाही करते हुए अंतिम तिथि तक बीमा का नवीनीकरण नहीं करवाया गया। जिससे प्रदेश के लाखो-लाख तेंदूपत्ता संग्राहक बीमा से वंचित हो गए ? बीमा का नवीनीकरण अंतिम तिथि को क्यों नहीं कराया गया। विभाग के पास आज तक इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि अगर अंतिम तिथि तक नवीनीकरण हो जाता तो बीमा का लाभ छत्तीसगढ़ के संग्राहकों को नियमित मिलता रहता।
तेंदूपत्ता संग्राहकों के बीमा नहीं होने के कारण पिछले दो सत्रो में लगभग 4 हजार से अधिक लोगों का सामान्य या दुर्घटना में निधन हो गया है ऐसे परिवारों के जीवकोपार्जन के लिए बीमा से जो राशि मिलती थी वह अब नहीं मिल रही है। इन लोगों को कहां से मिलेगी ? कौन देगा ? कितना देगा ? इस पर भी विभाग ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है और पीड़ित हजारो आदिवासी परिवार के आश्रित, सहायता राशि के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए बीमा योजना के तहत प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना एवं प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना उक्त योजना में सामान्य मृत्यु पर 2 लाख तथा दुर्घटना मृत्यु पर 4 लाख रूपये की सहायता राशि के प्रावधान हैं। आम आदमी बीमा योजना में 30 हजार रुपये से लेकर 75 हजार रूपये तक सहायता के प्रावधान हैं। ये योजनाएं दिनांक 1 जून 2019 से विभाग की लापरवाही से नवीनीकरण नहीं कराये जाने के कारण योजना बंद हो गई है। राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ पुरानी योजना में शामिल था। जिसका नवीनीकरण नहीं करवाया गया। राज्य सरकार द्वारा अपने हिस्से की राशि नहीं दी गई है परिणामस्वरूप नवीनीकरण नहीं हो सका। संग्राहकों को बड़ी सुविधा व सुरक्षा से वंचित कर दिया गया है। इस योजना का नवीनीकरण नहीं कराया जाना बहुत चिंताजनक है।
विभाग ने बीमा का नवीनीकरण की अंतिम तिथि तक नवीनीकरण नही करवाया क्योंकि सरकार के पास बीमाधारियों को लेकर डाटा ही नहीं था। अपर प्रबंध संचालक छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ नया रायपुर का पत्र क्र./वनो/संघ/बीमा/2019/9645 दिनांक 10/10/2019 का पत्र अध्ययन कर ले जिसमें उसके अधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि 10वे माह तक वे डाटा इकट्ठा नहीं कर पाए है और जिले-जिले से डाटा मंगा रहे है। जब डाटा ही नही और बीमा निगम को पैसा ही नही दिया तो कैसा बीमा होगा। पुरानी योजना में समय पर राशि जमा कर दी होती तो बीमा योजना जारी रहती। राज्य सरकार ने समय पर नवीनीकरण नही कराया इसलिए बीमा योजना बंद हो गई। वन विभाग बीमा की योजना को बंदकर प्रदेश के 12 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार को श्रम विभाग की योजना के तहत लाने की बात कह रही है। तेंदूपत्ता संग्राहकों के बीमा में भाजपा सरकार में जहां उन्हें सामान्य मृत्यु होने पर 2 लाख रूपये और दुर्घटना मृत्यु पर 4 लाख रूपये देने का प्रावधान था। उसमें कटौती कर वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार की श्रम विभाग की योजना अर्थात असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा योजना में मृत्यु होने पर 1 लाख व दिव्यांग होने पर 50 हजार देने का प्रावधान है। यह सीधे-सीधे गरीब आदिवासियों के आर्थिक कमर तोड़ने वाला काम है। तेंदूपत्ता श्रमिकों के लिए श्रम विभाग द्वारा लागू किए जा रहे योजना को नाकाफी है। श्रम विभाग की योजना असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा योजना ‘सहायता योजना’ है जबकि पूर्व शासन में जो बीमा होता था वह ‘‘बीमा-सुरक्षा योजना’’ है। सहायता योजना शासन के परिस्थितियों पर निर्भर है जबकि बीमा योजना विधि अधिनियम अनुसार संचालित है जिसमें बीमित को संवैधानिक संरक्षण है।
प्रदेश सरकार बार-बार श्रम विभाग की असंठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा योजना को लागू करने की बात कर रही है वह योजना पूर्व में भी वन विभाग की बीमा योजना के साथ ही साथ लागू था, और प्रदेश के तेंदूपत्ता संग्राहक जिन्होंने श्रम विभाग में भी पंजीयन कराया था, उसे इस योजना का वन विभाग की योजना के साथ ही लाभ मिल रहा था।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के अधिकारी सरकार को गुमराह कर रहे हैं। बहुत जल्द 13 लाख तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ताओं को उनके बीमा कराने के लिए श्रम विभाग के माध्यम से प्रक्रिया प्रारंभ करने की बात कह रहे हैं, जबकि श्रम विभाग के पास पहले ही अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले असंगठित मजदूर लोगों का 12 लाख लोगों का बीमा करने की प्रक्रिया चालू है, इसे ही वे लागू नहीं करा पा रहे हैं और उसमें भी 1000 असंगठित मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है, अभी हाल ही में श्रम विभाग की हुई एक बैठक में उन मृतक श्रमिकों का जो भुगतान शेष है, वह नहीं होने के कारण बैठक में नाराजगी व्यक्त की गई थी। 12 लाख असंगठित मजदूरों के बीमा के लिए विभिन्न कंपनियों से प्रस्ताव आमंत्रित किया गया है। जो लंबे समय से विचाराधीन है। श्रम विभाग तो अपना ही मूल कार्य नहीं कर पा रहा है। फिर इन आदिवासी तेंदूपत्ता संग्राहकों का क्या होगा? श्रम विभाग से जुड़े हितग्राहियों का बीमा कब होगा, इसकी समय सीमा तय नहीं की गयी है, और सरकार 13 लाख तेंदूपत्ता संग्रहणकर्ता जो मूलतः आदिवासी हैं, उनका भी पंजीयन कराकर बीमा कराने की प्रक्रिया श्रम विभाग पर डालने का असफल प्रयास कर रही है, इसको दोनों को जोड़ दिया जाए तो इसकी संख्या 25 लाख असंगठित श्रमिक होते हैं। कब इसकी प्रक्रिया पूरी होगी, ईश्वर जाने, कब बीमा होगा यह तय नहीं है। जो विभाग अपने मूल कर्तव्य को ही पूरा नहीं कर पा रहा हो उससे तेंदूपत्ता संग्राहकों को क्या उम्मीद होगी। वन विभाग आदिवासि हितग्राहियों के बोनस का भी 597 करोड़ व समितियों के लाभांश के 432 करोड़ रूपये पर कुंडलीमार बैठी है। आदिवासी बंधुओं के हक की, उनकी मेहनत की कमाई थी 1000 करोड़ से अधिक राशि को उन्हें वितरित करने के बजाय दबा रखी है। गरीब तेंदूपत्ता संग्राहक एवं समितियां दाने-दाने को मोहताज है, कोरोना काल में लोगों के पास काम नहीं है, पैसा नहीं है और विभाग उनके पैसो पर कुंडली मारे बैठी है और ब्याज खा रही है।
तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों के गरीब बच्चों को 2 सत्र से शिक्षा वृत्ति की राशि भी विभाग ने रोक रखी है जिससे लाखों की संख्या में पढ़ने वाले गरीब बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं और उनके पैसो को रोककर विभाग ब्याज कमा रही है क्या यह उचित है ?
मुख्यमंत्री आदिवासियों के साथ शोषण के इस ज्वलंत मुद्दे को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। मुझे लगता है पूरे इस मामले में विभाग एवं विभागीय अधिकारी भी आपको शायद अंधेरे में रखे हुए हैं। वन विभाग की बीमा योजना भी एक ऐसे विभाग को सौंपा जा रहा है जिनकी खुद की अनेक योजनाएं बंद है। तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए एक नई बीमा योजना वन विभाग को बनाने की आवश्यकता है जिससे उन्हें पूर्व की भांति राशि व लाभ मिल सके। पुरानी व्यवस्था के साथ, वनोपज संघ के अधिकारियों की नई कल्पना या प्रस्ताव की समीक्षा करे व आदिवासी हितों में ठोस निर्णय लेकर आदिवासी तेंदूपत्ता संग्राहकों का पूर्व की भांति बीमा हो, तत्काल उनको दो साल का बचा बोनस व लाभांश मिले, उनके बच्चों को छात्रवृत्ति की राशि मिले यह सुनिश्चित करने का कष्ट करेंगे।