काठमांडू, । नेपाल ने सन 1947 में नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते की समीक्षा की जरूरत बताई है। इस समझौते के अनुसार गोरखा समुदाय के लोग तीनों देशों की सेनाओं में नौकरी कर सकते हैं। नेपाल ने कहा है कि यह समझौता अब निरर्थक हो गया है, इसलिए तीनों देशों को अब इस पर नए सिरे से बात करनी चाहिए। मौजूदा भू-राजनीतिक स्थितियों में नेपाल की विदेश नीति विषय पर आयोजित चर्चा में नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली ने समझौते में शामिल भारत और ब्रिटेन से गोरखाओं के मसले पर बातचीत की आवश्यकता जताई।
ज्ञावली ने कहा कि भारत और ब्रिटेन की सेनाओं में गोरखा सैनिकों की भर्ती पुरानी व्यवस्था के हिसाब से होती है। इससे जुड़े कई बिंदु हैं। किसी समय यह नेपाल के युवाओं के लिए विदेश जाने का मौका होती थी। इसके चलते एक समय काफी लोगों को नौकरी मिलती थी लेकिन वर्तमान में इस समझौते के कई प्रावधानों को लेकर सवाल हैं। इसलिए अब हम इस समझौते के आपत्तिजनक पहलुओं पर चर्चा करना चाहते हैं।
विदेश मंत्री ज्ञावली ने बताया कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 2019 की अपनी आधिकारिक ब्रिटेन यात्रा के दौरान तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे से मुलाकात में यह मसला उठाया था और नए सिरे से बातचीत की आवश्यकता जताई थी। विदेश नीति पर चर्चा का आयोजन नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस ने किया था।
नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच 1947 में हुए समझौते में भारत और ब्रिटेन की सेनाओं में भी नेपाली गोरखाओं को भर्ती करने की सहमति बनी थी। समझौते के तहत गोरखा सैनिकों को दोनों सेनाओं में भारतीय और ब्रिटिश सैनिकों की भांति ही वेतन, भत्ते, सुविधाएं और पेंशन दी जाती है। लेकिन बाद में कुछ अवकाशप्राप्त गोरखा सैनिकों ने कहा कि उनके साथ भेदभाव होता है और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं व भत्तों में कटौती होती है। 1947 में हुआ समझौता भेदभाव वाला है।
कोरोना संक्रमण से नहीं शुरू हुई भारत से वार्ता
ज्ञावली ने कहा कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा मसले पर भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता प्रस्तावित है। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते दोनों देशों के अधिकारी बैठक नहीं कर पा रहे हैं। हालात में सुधार होते ही दोनों देश वार्ता प्रक्रिया शुरू करेंगे।