रायपुर। हमारी संस्कृति में त्यौहारों का बहुत महत्व है, और हर एक त्यौहार के पीछे एक कहानी,एक मान्यता भी होती है ,जो उस पर्व या त्यौहार को मनाने का कारण बनती है,कल ही हलषष्टी का त्यौहार था जिसे लेकर मान्यता है की इसी दिन बलराम जी का जन्म हुआ था। हलषष्टी के ठीक 2 दिन बाद श्री कृष्ण जन्माष्टमी या कान्हा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है क्योंकि भाद्रपद की अष्टमी तिथि को कान्हा जी जन्मे थे । मंगलवार को सूर्योदय के बाद ही अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी. अष्टमी तिथि मंगलवार, 11 अगस्त सुबह 9:06 बजे से शुरू हो जाएगी. यह तिथि बुधवार, 12 अगस्त सुबह 11:16 मिनट तक चलेगी। इसलिए इस साल कान्हा अष्टमी का उत्सव 2 दिन मनाया जायेगा ,जिसमे कल यानि 11 अगस्त को आम जनता जबकि 12 अगस्त को साधु-सन्यासी जन्माष्टमी का आनंद लेंगे।
क्यों मनाई जाती है ” कान्हा – अष्टमी ”
वैसे तो कृष्ण जन्माष्टमी हमारे नटखट कान्हा के जन्मदिन के उत्सव के रूप में मनाई जाती है ,पर इसके पीछे भी एक कहानी है , दरअसल श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं , और कहा जाता है की उन्होंने कंश के अत्याचार से मथुरावासियों को बचाने के लिए कंश की बहन देवकी और वासुदेव के 8वीं संतान के रूप जन्म लिया था । कंश मथुरा नगरी का राजा और पूरा मथुरा कंश के आतंक से परेशान था।उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेव सहित काल-कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला। जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस,तब से ही कान्हा के जन्म की खुशी में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है।
कैसे करे पूजा
जन्माष्ठमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत के सन्दर्भ में उल्लेख है कि जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु,गर्भपात,वैधव्य,दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होती। जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।
ऐसा माना जाता है की भगवान कृष्ण से जुड़ा यह पावन पर्व परलोक में भी सुख प्रदान कराने वाला होता है. ऐसे में इस व्रत को श्रद्धा और नियम-संयम के साथ करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन क्रोध,आलोचना,झूठ,ईर्ष्या,द्वेष जैसे कुविचारों से दूर रहना चाहिए।
पूजन विधि
कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पहले अल्प आहार ग्रहण करना चाहिए। जन्माष्ठमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें। माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें।चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान कृष्ण का पालना रखें. भगवान कृष्ण के बालस्वरूप की प्रतिमा को वस्त्र, फूल, इत्र, चंदन आदि से सजाकर पालने पर रखें। कान्हा के बाल स्वरूप के साथ उनकी सबसे प्रिय बांसुरी और मयूर पुष्प अवश्य रखें। पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें। रात्रि में 12 बजे के बाद श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं और जयकारे लगाएं । पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं ,पंजरी भगवान को अत्यंत प्रिय है। जन्माष्टमी के बाद बाल गोपाल को प्रतिदिन गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान करवाएं. उन्हें पुष्प, फल—फूल, चंदन, धूप आदि समर्पित करें. प्रसाद में उन्हें माखन-मिश्री आदि का भोग लगाएं। तत्पश्चात आरती करके प्रसाद को भक्तजनों में वितरित करें। इस व्रत को कुछ लोग निराहार रखते हैं. यदि आप से किसी कारण संभव न हो तो व्रत के बीच में आप फल, दूध आदि ले सकते हैं।