रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 14 अगस्त को दोपहर एक बजे अपने निवास कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में बिलासपुर जिले के कुरदर हिल इको रिसॉर्ट, कबीरधाम जिले के सरोधा दादर बैगा एथनिक रिसॉर्ट और कोण्डागांव जिले में नवनिर्मित धनकुल एथनिक रिसॉर्ट का वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से ई-लोकार्पण करेंगे। ’’ट्राइबल टूरिज्म सर्किट’’ स्वदेश दर्शन योजना के तहत ये टूरिस्ट रिसार्ट बनाए गए हैं।
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गृह, लोक निर्माण और पर्यटन मंत्री ताम्रध्वज साहू इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड द्वारा प्रदेश में निर्मित विभिन्न रिसोर्ट पर केंद्रित प्रमोशनल वीडियो फिल्म का प्रदर्शन भी किया जाएगा कार्यक्रम में पर्यटन विभाग के सचिव अन्बलगन पी. और छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड की प्रबंध संचालक इफ्फत आरा भी उपस्थित रहेंगे।
छत्तीसगढ़ में स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत ट्राईबल टूरिज्म सर्किट विकसित किया जा रहा है। इसके तहत पर्यटन स्थलों में बुनियादी ढ़ांचा विकसित किया जा रहा है। पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और स्थानीय कला, संस्कृति, हस्तशिल्प को भी बढ़ावा मिलेगा। छत्तीसगढ़ राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ट्राइबल टूरिज्म सर्किट के अंतर्गत कुल 13 स्थानों पर 96 करोड़ की लागत से ईको एथनिक टूरिस्ट रिसार्ट निर्मित कराए जा रहे हैं। जिसमें जशपुर, कुनकुरी, मैनपाट, कमलेश्वरपुर (मैनपाट), महेशपुर, कुरदर, सरोधा दादर, गंगरेल (धमतरी), नथियानवागांव, कोण्डागांव, जगदलपुर, चित्रकोट एवं तीरथगढ़ शामिल हैं। इस योजना के तहत क्रमशः कुरदर (बिलासपुर), सरोधा दादर (कबीरधाम) तथा धनकुल (कोण्डागांव) ईको एथनिक रिसार्ट का निर्माण पूरा कर लिया गया है। जिसका ई-लोकार्पण मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 14 अगस्त को करेंगे।
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छत्तीसगढ़ राज्य पर्यटन की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है, यहां वे सारी विशेषताएं उपलब्ध है जिसमें एक पर्यटक की रूचि होती है। हमारे राज्य में धार्मिक, पुरातात्विक एवं प्राकृतिक स्थलों की भरमार है। इसके साथ ही राज्य की पहचान यहां की आदिवासी एवं जनजातीय संस्कृति से भी है। पर्यटकों को अब सामान्य पर्यटन के साथ स्थानीय संस्कृति को भी निकट से देखने एवं उनकी विशेषताओं को समझने का अवसर मिलेगा।
हमारे प्रदेश में उत्तर में जशपुर से लेकर दक्षिण में कोंटा तक विभिन्न जनजातीय समुदाय निवास करते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य की आदिवासी एवं जनजातीय संस्कृति से पर्यटकों को परिचित कराने के लिए वर्ष 2016 में ट्रायबल टूरिज्म सर्किट की परियोजना स्वीकृत की गई है। इस योजना के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य की आदिवासी एवं जनजातीय संस्कृति के वैभव, कला, संस्कृति, परंपरा, हस्तशिल्प और ग्रामीण परिवेश को नजदीक से देखने-समझने के लिए छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड द्वारा पर्यटकों को इको-एथनिक वातावरण और सुविधाएं प्रदान करने की पहल की जा रही है।
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छत्तीसगढ़ राज्य में अति प्राचीन कई तरह की जनजातियां अपनी समृद्ध लोक परंपरा, संस्कृति, जीवन शैली और अनुष्ठानिक क्रियाओं को अपने आप में सहेजे हुए निवास करती हैं, जो छत्तीसगढ़ को अद्वितीय बनाती है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर एवं बेलगहना से 12 किलोमीटर दूरी पर अचानकमार टाइगर रिजर्व बिलासपुर से लगी पहाड़ी पर स्थित है बैगा विलेज कुरदर। इको डेस्टीनेशन के रूप में कुरदर को विकसित किया गया है। कुरदर हिल इको रिसॉर्ट जहां प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़े आपका हार्दिक स्वागत करती है। घने वनों से आच्छादित छत्तीसगढ़ की नैसर्गिक सुंदरता पर्यटकों को आकर्षित करती है।
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छत्तीसगढ़ राज्य में धरती और आकाश को मिलते हुए देखने का रोमाचंक एवं अदभुत दृश्य कबीरधाम जिले के सरोधा दादर में देखा जा सकता है। यह चिल्फी घाटी पर स्थित है। एथनिक रिसॉर्ट के व्यू पाइंट से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय कुदरत की खूबसूरती को बहुत ही करीब से देखा जा सकता है। पहाड़ी पर स्थित एथनिक रिसॉर्ट में ट्राइबल थीम पर हट्स, कैफेटेरिया और इंटरप्रिटेशन सेंटर का निर्माण किया गया है। यहां से पर्यटक घने वनों से आच्छादित छ.ग. की नैसर्गिक सुंदरता का लुत्फ उठा सकते है। इस एथनिक रिसॉर्ट में छत्तीसगढ़ में पहली बार विदेशों की तर्ज पर पर्यटकों के आवास के लिए वूडन कॉटेज का निर्माण किया गया है। इस रिसॉर्ट में एक भव्य मुक्ताकाश मंच का भी निर्माण किया गया है।
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कोण्डागांव जिले की खूबसूरत वादियों में पर्यटकों के लिये इस धनकुल में एथनिक रिसॉर्ट का निर्माण किया गया है। धनकुल एथनिक रिसॉर्ट जनजातीय समुदाय की परंपरागत विशेषताओं को वृहद रूप से सजोएं हुए किसी भी ट्राइबल विलेज से कम नहीं है। यहां आगमन के साथ ही जगदलपुर पैलेस की प्रतिकृति में निर्मित भव्य प्रवेश द्वार अपने वैभवशाली अतीत की कहानी खुद बयां करता है। रिसॉर्ट का प्रत्येक स्थल जनजातीय संस्कृति की अनुपम छटा प्रदर्शित करता है। इस रिसॉर्ट में जनजातीय परपंरागत शैली में संग्रहालय का भी निर्माण किया गया है, जहां जनजातीय समुदाय के विभिन्न कालखंडो में दैनिक जीवन में उपयोग में लाए जाने वाले दुर्लभ वाद्य यंत्र, कृषि उपकरण, लौह शिल्प, काष्ठ शिल्प, ढोकरा शिल्प, टेराकोटा एवं बांस शिल्प से निर्मित विभिन्न कलाकृतियों को धरोहर के रूप में प्रदर्शित किया गया है।