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परीक्षाएं आयोजित कराए बगैर डिग्री देने पर राज्य निर्णय नहीं कर सकते, यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

Poonam Shukla
Last updated: 2020/08/18 at 11:15 PM
Poonam Shukla
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6 Min Read
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नयी दिल्ली। यूनिवर्सिटी की फाइनल ईयर परीक्षा कराने के यूजीसी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को देर तक सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चली। सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि 30 सितंबर को यूजीसी ने परीक्षा की तारीख तय की थी।

सुप्रीम कोर्ट में ग्रेजुएशन की अंतिम वर्ष की परीक्षा के मामले में आज दिन भर सुनवाई चली। सुनवाई के दौरान UGC ने महाराष्ट्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट में वकील ने कहा कि राज्य सरकार यह नहीं कह सकती कि परीक्षा आयोजित न करें। अधिक से अधिक राज्य सरकार ये कह सकती है कि परीक्षा की तारीख आगे बढ़ा दी जाए।

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कोर्ट में यूजीसी के वकील ने महाराष्ट्र सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया। यूजीसी ने दलील दी कि विश्वविद्यालय के कुलपतियों को मई में महाराष्ट्र सरकार द्वारा बैठक के लिए बुलाया गया था। इस बैठक में फैसला लिया गया कि पहले और दूसरे वर्ष के छात्रों को पास किया जा सकता है, लेकिन अंतिम परीक्षा की जरूरी है।

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इस बैठक के बाद एक याचिका युवा सेना द्वारा दायर की जाती है जिसकी अध्यक्षता महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बेटे ने की। इसी युवा सेना की याचिका के बाद सरकार का भी विचार बदल जाता है और वह परीक्षा के खिलाफ हो गई जबकि राज्य सरकार को परीक्षा रद्द करने का अधिकार ही नहीं है।

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यूजीसी के वकील की तरफ से दलील दी गई कि महाराष्ट्र राज्य लोक सेवा परीक्षा सितंबर में आयोजित की जा रही है, जिसमें 2 लाख 20 हजार से अधिक छात्रों के शामिल होने का अनुमान है। जबकि महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों में कुल 10 लाख छात्र हैं। केवल लगभग 2.5 लाख अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अगर राज्य लोक सेवा परीक्षा आयोजित की जा सकती है तो अंतिम वर्ष विश्वविद्यालय परीक्षा क्यों नहीं?


बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने भी आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा परीक्षा रद्द करने के फैसले के पीछे राजनीतिक वजह है। यूजीसी की ओर से परीक्षा टालने की याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले में सरकार से पूछा कि क्या यूजीसी के आदेश और निर्देश मेें सरकार दख़ल दे सकती है?

इसके अलावा सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि छात्रों का हित किसमें है ये छात्र तय नहीं कर सकते। इसके लिए वैधानिक संस्था है। छात्र ये सब तय करने के काबिल नहीं हैं। सरकारें बस दो ही काम कर सकती हैं अव्वल तो परीक्षा कराने में खुद को अक्षम बताते हुए हाथ खड़े कर दें या फिर पिछली परीक्षा के नतीजे के आधार पर रिजल्ट घोषित कर दें।


महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में कह दिया है कि आज की तारीख में परीक्षाएं कराना मुमकिन नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि क्या सरकार ये कह सकती है कि बिना परीक्षा के सबको पास किया जाएगा। अगर हम ये मान लें तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डीके दातार ने कहा कि यूजीसी ने 6 जुलाई से परीक्षा का फरमान जारी करने से पहले विश्वविद्यालयों से कोई बातचीत नहीं की। इस मामले में पहले ही महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि 13 जुलाई को स्टेट डिजास्टर मैंनेजमेंट अथॉरिटी ने प्रस्ताव पास किया है कि परीक्षा ना कराई जाए। बता दें कि UGC द्वारा ग्रेजुएशन थर्ड ईयर के एग्जाम 30 सितंबर तक कराने का आदेश देने के मामले में ये सुनवाई हो रही है। परीक्षा का विरोध कर रहे याचिकाकर्ता छात्रों का तर्क है कि दिल्ली और महाराष्ट्र ने परीक्षा रद्द कर दी है।


बता दें कि याचिकाकर्ताओं में COVID पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है, उसने कहा है कि ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।


देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के करीब 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर यूजीसी द्वारा 6 जुलाई को जारी की गई संशोधित गाइडलाइंस को रद्द करने की मांग की है। यूजीसी ने अपनी संशोधित गाइडलाइंस में देश के सभी विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे फाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले करा लें। छात्रों ने अपनी याचिका में मांग की है कि फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द होनी चाहिए और छात्रों का रिजल्ट उनके पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर जारी किया जाना चाहिए।

 

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