जम्मू कश्मीर। पुनर्गठन के एक साल बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य से अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियों को हटाने का फैसला किया है। मंत्रालय ने राज्य में सुरक्षा हालात की समीक्षा करने के बाद यह फैसला किया है। इन कंपनियों की वापसी की प्रक्रिया अगले दो-तीन दिनों में शुरू हो जाएगी। गौर करने वाली बात यह है कि यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में तनाव बरकरार है। यही नहीं हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को इस केंद्र शासित प्रदेश का उपराज्यपाल बनाया गया है।
गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार जम्मू कश्मीर से वापस भेजी जाने वाली कंपनियों में सबसे ज्यादा 40 कंपनियां केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) और सशस्त्र सुरक्षा बल (एसएसबी) की 20-20 कंपनियां वापस भेजी जाएंगी। संबंधित अधिकारियों ने बताया कि यहां से लगभग 10 हजार जवानों को हटाकर पूर्वोत्तर के राज्यों और नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाएगा। सीआइएसएफ की दो से तीन कंपनियों को गुजरात में तैनात किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार को जम्मू कश्मीर के सलाहकार, सचिवायुक्त और पुलिस महानिदेशक को भेजे संदेश में फैसले की जानकारी दी है।
गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म कर दिया था। उस समय 400 अतिरिक्त कंपनियों को तैनात किया गया था। इससे पहले दिसंबर 2019 की शुरुआत में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 20 कंपनियों को वापस बुलाया गया था। दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में 72 कंपनियों को और हटाया गया था। अब 100 कंपनियों को हटाए जाने के फैसले के बाद 208 अतिरिक्त कंपनियां ही रह जाएंगी। अधिकारियों के मुताबिक राज्य में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आमतौर पर अर्धसैनिक बलों की चार सौ से अधिक कंपनियां हमेशा तैनात रहती हैं। एक कंपनी में सौ जवान होते हैं। इस तरह 40-50 हजार जवानों की तैनाती राज्य में हमेशा रहती है। अब हालात में सुधार के बाद सुरक्षा बलों को कम किया जा रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की अतिरिक्त कंपनियों को हटाने का फैसला प्रदेश के समग्र सुरक्षा परिदृश्य में सुधार के आधार पर लिया है। अधिकांश आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं। ¨हसक प्रदर्शनों और पत्थरबाजी की घटनाएं भी अब अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं।