तीज का त्यौहार महिलाओं के लिए खास महत्व रखता है , इस दिन महिलाएं अपने पतियों की लम्बी उम्र के लिए और कन्याएं मनचाहे वर के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है, मान्यता है की माता पार्वती ने भी ये व्रत रखा था। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं पूरे विधि-विधान, पूर्ण निष्ठा और विवेक से इस व्रत को करती हैं उन्हें अपने मन के मुताबिक जीवनसाथी मिलता है। वहीं जो विवाहित महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत करती हैं उनके दांपत्य जीवन में आ रही कठिनाई दूर होती है और खुशियां बनी रहती हैं। एक मान्यता ये भी है कि हरतालिका तीज का व्रत करने वाली महिलाएं माता पार्वती के समान सुखपूर्वक सुहागिन रहकर ही शिवलोक को जाती हैं। पंचांग के अनुसार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज पर्व के रूप में मनाया जाता है ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इस साल 21 अगस्त को हरितालिका तीज का पर्व है, आइये जानते है ,व्रत कथा , पूजन विधि और शुभ मुहूर्त-
हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त –
पचांग के अनुसार इस वर्ष तृतीया तिथि 21 अगस्त को पड़ रही है , इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा , इस दिन सिद्ध योग का बन रहा है। सूर्य सिंह राशि , और चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा। 21 अगस्त को प्रातःकाल 5 बजकर 53 मिनट 39 सेकंड से 8 बजकर 29 मिनट 44 सेकंड तक। प्रदोष काल मुहूर्त शाम 6 बजकर 54 मिनट 4 सेकंड से 9 बजकर 6 मिनट 6 सेकंड तक रहेगा।
पूजा विधि –
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी 21 अगस्त के प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। उसके बाद पूजा स्थान की सफाई करें। अब हाथ में जल और पुष्प लेकर हरतालिका तीज व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात सुबह या प्रदोष के पूजा मुहूर्त का ध्यान रखकर पूजा करें।
सबसे पहले मिट्टी का एक शिवलिंग, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति बना लें। अब सर्वप्रथम भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें। उनको भांग, धतूरा, बेलपत्र, सफेद चंदन, सफेद पुष्प, फल आदि अर्पित करें। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करें। फिर माता पार्वती को अक्षत्, सिंदूर, फूल, फल, धूप, दीप आदि अर्पित करें। इस दौरान ऊँ उमायै नम: मंत्र का जाप करें।
आप सुयोग्य वर की कामना से यह व्रत कर रही हैं, इसलिए माता को सुहाग की सामग्री जैसे मेंहदी, चूड़ी, चुनरी, साड़ी, सिंदूर, कंगना आदि अर्पित करें। इसके पश्चात विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की भी पूजा करें। इसके बाद हरतालिका तीज व्रत कथा का पाठ करें। अंत में माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की आरती करें। इसके बाद पूजा में कोई कमी रह गई हो तो उनसे क्षमा याचना कर लें। प्रदोष काल में पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें, यदि आप फलाहारी व्रत कर रही हैं। अन्यथा अगले दिन स्नान आदि के बाद भोजन ग्रहण करके व्रत को पूरा करें।
व्रत कथा –
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव जी ने माता पार्वती को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था। मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी।
फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया।
उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे। फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे। इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।