लद्दाख के पैगोंग क्षेत्र में चीन की फौज पिछले करीब चार महीने से एलएसी के इस पार भारतीय सीमा क्षेत्र में धौंस जमा रही है। भारतीय विदेश मंत्रालय की बार-बार अपील के बाद भी चीन ने डेपसांग, पैंगोंग से अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। 19 अगस्त को दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के राजनयिकों की वार्ता में भी कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
विदेश मंत्रालय और सैन्य सूत्रों के अनुसार चीन के साथ कूटनीतिक, राजनयिक, विदेश सचिव, विशेष प्रतिनिधि (एनएसए स्तर) और सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता हो चुकी है। पैगोंग त्सो और डेपसांग जैसे सामरिक दृष्टि से महत्व क्षेत्र में अभी स्थिति जस की तस है। सैन्य सूत्र बताते हैं फिलहाल सेना लद्दाख क्षेत्र में सैनिकों की लंबे समय की तैनाती जैसी योजना को अंतिम रूप देने में जुटी है।
चीन की फौज को एलएसी पर भेजने का क्या है प्लान?
सैन्य सूत्रों का कहना है हम किसी भी चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक ब्रीफिंग से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि दोनों देश सीमा पर शांति और सौहार्द्र बनाए रखने का संकल्प बार—बार दोहरा रहे हैं।
चीन के विशेष प्रतिनिध वांग यी ने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ वार्ता में इस पर प्रतिबद्धता जताई और चीनी सेना के पीछे हटने पर सहमति बनी थी। चीन को अंतरराष्ट्रीय समझौतों और सहमतियों का पालन करना चाहिए। विदेश मंत्रालय के अनुसार दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते पर इस मसले का गंभीर असर पड़ सकता है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक चीन से कोई सकारात्मक संकेत नहीं आए हैं।
भारत के पास क्या है रास्ता?
विदेश मंत्रालय के पूर्व विदेश सचिव शशांक, चीन मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह, विदेश मंत्रालय से कुछ समय पहले ही रिटायर हुए हैं। बीजिंग स्थित दूतावास में काम कर चुके सूत्र का कहना है कि चीन काफी समय से पड़ोसियों के साथ ढाई कदम आगे, दो कदम पीछे की नीति पर चल रहा है। 2017 में डोकलाम घुसपैठ के बाद उसने भारत के साथ आक्रमकता भी दिखानी शुरू कर दी है।
इसलिए भारत को सुनियोजित तरीके अपनाने होंगे। वायुसेना के अवकाश प्राप्त वाइस एयर मार्शल एनबी सिंह, सेना से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल बलवीर सिंह संधू समेत अन्य के पास चीन को करारा जवाब देने के सिवा कोई ठोस जवाब नहीं है। वहीं भारत ने चीन के साथ कारोबारी रिश्ते में दबाव बनाने का संकेत देते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तैनाती बढ़ाने, सतर्कता बनाए रखने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की विस्तारवादी नीति पर अपना पक्ष रखने का रास्ता अपनाया है।