नई दिल्ली। अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने जम्मू (Jammu) में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगी बाड़ (India-Pakistan international border fence) के नीचे एक सुरंग (tunnel) का पता लगाया है. उन्होंने कहा कि इस तरह की अन्य छिपी संरचनाओं (hidden structures) की तलाश के लिए बल ने क्षेत्र में एक बड़ा खोज अभियान (major search operation) शुरू किया है. ऐसी संरचनाओं से घुसपैठ (infiltration) में सहायता मिलती है. उन्होंने कहा, इसके साथ ही जिस संरचना का पता लगाया गया है, उसका विश्लेषण किया जा रहा है.
उन्होंने बताया, बीएसएफ के महानिदेशक राकेश अस्थाना (BSF Director General Rakesh Asthana) ने अपने सीमावर्ती कमांडरों (frontier commanders) को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिये हैं कि घुसपैठ रोधी ग्रिड (anti-infiltration grid) बरकरार है और इस मोर्चे पर कोई ढिलाई नहीं है. जम्मू के सांबा सेक्टर (Samba sector of Jammu) में गुरुवार को भारतीय सीमा की ओर सीमा पर लगी बाड़ से लगभग 50 मीटर की दूरी पर एक सुरंग का पता बीएसएफ के गश्ती दल (BSF patrol) ने लगाया.
सुरंग के मुंह पर थे 8-10 प्लास्टिक सैंडबैग, जिन पर लिखा है ‘कराची और शकरगढ़’
अधिकारियों ने बताया, अधिकारियों ने बाद में सुरंग की जांच की और उसके मुंह पर प्लास्टिक के सैंडबैग पाए गए, जिन पर “पाकिस्तानी होने के चिन्ह” थे. सूत्रों के अनुसार, सुरंग के मुंह के बाद यह लगभग 25 फीट गहरी है और सीमा बल ने इस क्षेत्र में आईबी के साथ मिलकर एक बड़ा खोज अभियान शुरू कर दिया है ताकि अन्य कोई ऐसी गुप्त संरचना हो तो उसका भी पता लगाया जा सके, जो घुसपैठियों को पाकिस्तान से सीमा पार करने में मदद करती हो. इनके जरिए आतंकियों, हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी में भी मदद मिलती है.
अधिकारियों ने कहा कि लगभग 8-10 प्लास्टिक सैंडबैग जिन पर ‘कराची और शकरगढ़’ लिखा है, उन्हें सुरंग के मुंह से बरामद किया गया है और बैग पर बनने और एक्सपायरी की तारीख है, जो यह दिखाता है कि उनका निर्माण हाल ही में किया गया था. उन्होंने कहा, निकटतम पाकिस्तानी सीमा चौकी सुरंग से लगभग 400 मीटर दूर है.
‘पाकिस्तानी रेंजर्स की सहमति के बिना इतनी बड़ी सुरंग का निर्माण संभव नहीं था’
बीएसएफ आईजी एनएस जामवाल ने कहा है, “मिले सैंडबैग पर पाकिस्तानी होने के चिन्ह साफ देखे जा सकते हैं, जो यह साफ दिखाता है कि इसे बाकायदा योजना बनाकर खोदा गया और इसके लिए इंजीनियरिंग प्रयास किये गये. बिना पाकिस्तानी रेंजर्स और अन्य एजेंसियों की सहमति और अनुमोदन के इतनी बड़ी सुरंग नहीं बनाई जा सकती थी.”