रायपुर। कोरोना मरीजों के शव के सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए अब परिजनों को किसी तरह की समस्या से गुजरना नहीं पड़ेगा और न ही उन्हें अंतिम संस्कार के लिए दो-तीन दिन इंतजार करने की नौबत आएगी। मारवाड़ी श्मशानघाट में बंद पड़े गैसीय शवदाह गृह को शुरू करा दिया है। सोमवार से यहां ईको फ्रेंडली तरीके से अंतिम संस्कार शुरू हो जाएगा। एक पहल संस्था पंद्रह साल पुरानी दर पर दो हजार रुपए का सेवा शुल्क लेकर अंतिम संस्कार कराएगी। एक संस्कार में एक घंटे का समय लगेगा। गरीबों के लिए यह व्यवस्था मुफ्त होगी।
स्वेच्छा से दान में दिया एक लाख
यूं तो गोबर की लकड़ी से अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम तक सामग्री सुपुर्दगी के साथ सेवा शुल्क तय है, पर कुछ दानदाता अपने परिजनों की स्मृति में स्वेच्छा से दान में देने से पीछे नहीं हटते। दाह संस्कार के समय ऐसे ही एक परिवार ने अपने दादी के अंतिम संस्कार के समय एक लाख रुपए गाेशाला के लिए चारा खरीदने दान में दिए।
चिमनी साफ, सोमवार से शुरू हो जाएगा अंतिम क्रिया का सिलसिला
एक पहल संस्था के राजकुमार साहू, उपाध्यक्ष रितेश अग्रवाल ने संयुक्त रूप से बताया, गैसीय शवदाह की बंद पड़ी चिमनी को साफ कर लिया गया है। 15 साल पुराने सिस्टम में 24 गैस टंकी एक साथ बर्न करने से रिहाइशी बस्ती आसपास होने से रिस्क है, इसलिए शुरू में गोबर की बनी लकड़ी का उपयोग करते हुए इको फ्रेंडली अंतिम संस्कार कराया जाएगा। इसमें डीजल इंजन से भाप दिया जाएगा। गोकुलनगर के गाेठान में गाय के गोबर से निर्मित 750 किलोे गोबर की लकड़ी का पुराना स्टाक अभी उपलब्ध है।
10 माह में 1600 शवों का संस्कार
गैसीय शवदाह गृह का जिम्मा संभालने वाली संस्था के सदस्यों ने बताया, महापौर एजाज ढेबर ने गोकुलनगर के गोठान को गोबर की लकड़ी बनाने के लिए उपलब्ध कराया है। इस लकड़ी से न्यूनतम सेवा शुल्क लेकर पिछले 10 माह में शहर के अलग-अलग मुक्तिधाम में 1600 शवों का अंतिम संस्कार इको फ्रेंडली तरीके से कराया है। सबसे ज्यादा राजेंद्रनगर के मुक्तिधाम में इस पद्धति से अंतिम संस्कार हुए हैं। साथ ही महादेवघाट, तेलीबांधा, मारवाड़ी श्मशानघाट में लोगों ने जागरूकता का परिचय देते हुए इस सिस्टम को अपनाया है।
तीन गुना खर्चा कम बारिश में भी समस्या नहीं
अंतिम क्रिया में लगने वाले खर्च के हिसाब से नई व्यवस्था में गोबर की लकड़ी से अंतिम संस्कार कराने पर चार गुना खर्चा कम आएगा। आमतौर पर एक अंतिम संस्कार में 5 से 6 हजार रुपए लकड़ी, कंडा, रॉल, घी सहित अन्य सामग्री का खर्च आता है, पर मारवाड़ी श्मशानघाट में नगर निगम द्वारा शुरू किए जा रहे गैसीय शवदाह गृह में केवल दो हजार रुपए का सेवा शुल्क तय है, यानी तीन गुना खर्चा कम आएगा। यही नहीं, बारिश में गीली लकड़ी से चिता जलने में घंटों लगने वाला समय और राॅल तथा घी की मात्रा ज्यादा लगने से लेकर लकड़ी के धुंए से परेशान लोगों को इससे छुटकारा मिलेगा। शहर में 40 से 50 श्मशानघाट हैं, जहां औसतन 100 से ज्यादा शव रोज अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते हैं। इस कार्य में बड़ी संख्या में लकड़ी और कंडा की खपत होने से गरीब व मध्यम परिवार के लिए आर्थिक दिक्कत आती है।