रायपुर। हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन ही देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। साल 1953 में पहली बार हिंदी दिवस का आयोजन हुआ था। तभी से यह सिलसिला बना हुआ है। हिंदी दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा की स्थिति और विकास पर मंथन को ध्यान में रखना है। देश में करीब 77 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं।
सन् 1947 में देश आजाद होने के बाद सबसे बड़ा प्रश्न था कि किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए। काफी विचार-विमर्श करने के बाद 14 सितंबर सन् 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है, जिसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है। सन् 1953 से 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।
हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने के बाद गैर हिंदी भाषी लोगों ने इसका विरोध किया, जिसके कारण अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा बनाया गया। हिंदी की सबसे अच्छी बात ये है कि यह समझने में बहुत आसान है, इसे जैसा लिखा जाता है इसका उच्चारण भी उसी प्रकार किया जाता है। हमारे देश में 77 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते, समझते और पढ़ते हैं। आधिकारिक काम-काज की भाषा के तौर पर भी हिंदी का उपयोग होता है।
गांधी जी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। सन् 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में गांधी जी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने को कहा था। जब हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया, तब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने हिंदी के प्रति गांधी जी के प्रयासों को याद किया।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व को देखते हुए इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाने को कहा था। भारत देश के नागरिक होने के नाते हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम हिंदी को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। अपने काम-काज की भाषा के रूप में हिंदी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हिन्दी दिवस पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
उन्होंने कहा है कि हिन्दी ने देश को एक सूत्र में बांधने में अहम भूमिका निभाई है। हिन्दी हमारी विविधता में एकता को पुष्ट करती है। हिन्दी सर्व सुलभ और सहज ग्रहणीय भाषा है।
राजभाषा हिन्दी अत्यंत समृद्ध एवं जीवंत भाषा है,इसका स्वरूप समावेशी हैै और उसकी लिपि देवनागरी विश्व की सबसे पुरानी एवं वैज्ञानिक लिपियों में से है, उसका शब्द भंडार एक तरफ संस्कृत से तो दूसरी तरफ अन्य अनेक देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों से समृद्ध हुआ है।
यह निरंतर प्रवाहमान भाषा है। हिन्दी के ये गुण उसे मात्र एक भाषा के दर्जे से ऊपर एक संस्कृति होने का सम्मान दिलाते हैं। हिन्दी भाषा की सहज ग्राह्यता के कारण यह जन-जन की भाषा बनी हुई है।