ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने दस लाख से ज्यादा लोगों के डीएनए के डाटाबेस के आधार पर यह दावा किया है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में यह शोध प्रकाशित हुआ है कि ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में कोविड का संक्रमण होने की संभावना बेहद कम होती है।
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि अगर ओ ब्लड ग्रुप वाला कोई शख्स कोरोना से संक्रमित हो भी जाता है तो भी उसकी हालत गंभीर होने की संभावना न के बराबर होती है। ऑस्ट्रेलिया के बेकर हार्ट एंड डायबिटीज इंस्टीट्यूट के सीनियर रिसर्च फेलो जेम्स मैकफेडयेन ने कहा कि यह बेहद रोचक खुलासा है कि संक्रमण होने या उसके गंभीर स्तर पर पहुंचने की संभावना में ब्लड ग्रुप का भी प्रभाव देखा गया है। प्रारंभिक स्तर पर मिले इस निष्कर्ष का बड़े पैमाने पर अध्ययन कराने से कोरोना का इलाज खोजने में भी मदद मिल सकती है।
मैकफेडयेन का कहना है कि कोरोना वायरस में एक स्पाइक प्रोटीन होता है, जो किसी कोशिका के साथ जुड़कर उसे संक्रमित करने के साथ तेजी से बढ़ता है। संभवत: विभिन्न रक्त समूहों के अणु इस प्रोटीन को लेकर अलग-2 प्रतिक्रिया देते हैं, जो संक्रमण की संभावना को कम या ज्यादा करता है। आकलन यह भी है कि ओ ब्लड ग्रुप में कुछ ऐसी प्राकृतिक एंटीबॉडी होती हैं, जो कोविड की आशंका को कम करती है।
उनका कहना है कि मुख्तया चार ब्लड ग्रुप ए, बी, एबी और ओ होते हैं। इसमें ओ सबसे सामान्य रक्त समूह है। ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में करीब 48 फीसदी आबादी का ब्लड ग्रुप ओ है। हालांकि यह अभी भी गुत्थी है कि कैसे ये रक्त समूह विभिन्न बीमारियों को लेकर अलग-अलग असर डालते हैं। इसी रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई संस्थानों ने जेनेटिक टेस्टिंग करने वाली कंपनी ‘23एंडमी’ के जरिए दस लाख पांच हजार लोगों के थूक का नमूना लेकर जेनेटिक टेस्ट कर डीएनए रिपोर्ट तैयार की। इन दस लाख लोगों के कोविड के संक्रमित होने या न होने की जानकारी लेने के साथ उनके जीनोम से तुलना की गई तो नतीजा निकलकर आया कि ओ ब्लड ग्रुप के लोगों के पॉजिटिव होने की संभावना बेहद कम है। यह अध्ययन पिछले हफ्ते रिसर्च साइट मेडआरएक्सिव में भी अपलोड किया गया।