रायपुर। नागरिक सहकारी बैंक के अध्यक्ष हरमीत सिंह होरा ने कृषि संशोधन विधेयक का विरोध किया है। उन्होंने जारी बयान में कहा कि कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद है। देश की अर्थव्यवस्था की आत्मा है। कृषि का आधार धरती है, और भारतीय संस्कृति में धरती को माता के नाम से संबोधित किया जाता है। कृषि विशेषज्ञ अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता इस विधेयक के विरोध में हैं। यह बिल किसान, कृषि और देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है। देश पूर्णता: आर्थिक गुलामी के दलदल में धंस जाएगा। इससे अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ जाएगी। पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों का कृषि पर सीधे कब्जा हो जाएगा। छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष में उन्होंने कहा कि जहां धान की बंपर पैदावार होती है। ऐसे में केंद्र सरकार का यह निर्णय किसानों के अहित में है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा की जा रही किसानों के हित में 2500 रूपये में समर्थन मूल्य सहित धान खरीदी में सीधा असर पड़ेगा, जिनका सीधा नुकसान किसानों की जेब में पड़ेगा।
उन्होंने तीनों बिल का उल्लेख किया है-
पहला : शासकीय कृषि उपज मंडी को समाप्त कर खुले बाजार की व्यवस्था
किसान अपनी उपज को सीधे बाजार में बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। जब किसान बिना किसी सुरक्षा कवच सीधे बाजार के हवाले होगा और सामने बड़े पूंजीपति और कॉरपोरेट्स घराने होंगे। तो क्या किसान जो पहले से ही कर्ज के बोझ के तले दबा है, वह स्वयं को अपनी जमीन और क़ृषि को बचा पाने मे सफल होगा? बड़े कॉर्पोरेट्स घराने कब उन्हें निगल जायेंगे किसी को एहसास भी नहीं हो पाएगा।
दूसरा : कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
इसमें कोई भी कॉरपोरेट किसानों से कॉन्ट्रैक्ट करके खेती कर पाएगा। और विवाद की स्थिति में एसडीएम और कलेक्टर स्टार पर ही अंतिम निपटारा होगा। अदालत या कोर्ट जाने का अधिकार नहीं होगा। क्या यह किसानों को सीधे मौत के मुंह में धकेलने की खतरनाक साजिश नहीं है? सीधा सवाल है कि किसान जो नहीं चाह रहे हैं उन्हें जबरदस्ती देने की कोशिश क्यों की जा रही है?
तीसरा : एसेंशियल कॉमेडी बिल
इसमें सरकार अब यह बदलाव लाने जा रही है कि किसी भी अनाज को आवश्यक उत्पाद नहीं माना जाएगा। इसका मतलब है कि जमाखोरी अब गैरकानूनी नहीं रहेगी। कारोबारी अपने हिसाब से खाद्दान्न और उत्पादों का भंडारण कर सकेंगे और दाम अधिक होने पर उसे भेज सकेंगे।