कभी-कभी कुछ फैसले ऐसे होते हैं जिसे लेने के लिए पार्टी के बड़े नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ झंडा उठाने से नहीं घबराते । वहीं जब बात स्थानीय मुद्दों और ग्रामीणों के जीवन से जुड़ी हो तो पार्टी से बढ़कर जनहित हो जाता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के क्षेत्र सरगुजा में। जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अपने ही सरकार की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के खिलाफ आवाज बुलंद कर रखी है। लेकिन यदि ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र में कांग्रेस के कार्यकर्ता सीधा सीधा राज्य सरकार को ही संदेश देते नजर आएंगे । क्योंकि स्थानीय नेताओं की मानें तो भले ही उनकी सरकार सत्ता में हो । लेकिन यदि सरकार के फैसलों से स्थानीय लोगों और जंगल में रहने वाले आदिवासियों को जरा सी भी दिक्कत होगी तो वो हमेश ही आदिवासियों के साथ खड़े रहेेंगे। औऱ ऐसे फैसलों का कभी भी साथ नहीं देंगे जिनके कारण उनके क्षेत्र की जनता प्रभावित हो।
लेमरु प्रोजेक्ट को लेकर कांग्रेस में रस्साकशीं
छत्तीसगढ़ के सरगुजा में लेमरु प्रोजेक्ट अब ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा है। लगातार ग्रामीणों के बढ़ रहे विरोध को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने इसे जनविरोधी मानते हुए इससे जुड़े सभी कामों को रोकने के लिए कलेक्टर को खत लिखा है। कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव के निर्देश पर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और जिला पंचायत उपाध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कलेक्टर सरगुजा को पत्र प्रेषित कर लेमरू हाथी प्रोजेक्ट से जुड़ी गतिविधियों को फिलहाल स्थगित रखने की मांग की है। वहीं लेमरु प्रोजेक्ट के दायरे में 39 गांव आ रहे हैं। जिसके कारण ग्रामीणों ने इसके विरोध में झंडा बुलंद कर लिया है।
कांग्रेस जिला अध्यक्ष की माने तो पार्टी ने भी इस प्रोजेक्ट को फिलहाल स्थगित करने का मन बनाया है। वहीं ग्रामीणों का रुख देखते हुए स्थानीय कांग्रेस भी ये नहीं चाहती कि ये प्रोजेक्ट फिलहाल शुरु किया जाए। कांग्रेस जिलाध्यक्ष की माने तो यदि उनकी सरकार ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ी किसी भी चीज को सरगुजा में शुरु करने की कोशिश की तो वो अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे। क्योंकि उनके लिए ग्रामीणों का हित पहले है सरकार का प्रोजेक्ट बाद में।
बहरहाल सरगुजा वनवृत्त हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित है। यहां वर्ष भर लगभग एक सौ हाथियों की मौजूदगी रहती है।इसलिए हाथियों और इंसानों का आमना- सामना लगा रहता है। ऐसे में लेमरु प्रोजेक्ट से हाथियों का भला हो सकता है। लेकिन जानवर के भले के लिए 39 गांवों को अपनी कुर्बानी देनी होगी। जिसके लिए वो तैयार नहीं।