छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसा चमत्कारी देवी दुर्गा का स्थान हैं, जो सालभर में एक बार ही खुलता हैं। 400 साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर श्मशान के ऊपर बना हैं। इस मंदिर के निर्माण की कहानी भी निराली हैं, मंदिर का निर्माण मां के दिए हुए एक सपने के बाद हुआ था। कंकाली मठ के नाम से यह मंदिर देशभर में प्रसिद्ध हैं। पुरानी बस्ती, ब्राह्मण पारा क्षेत्र में प्रतिष्ठित कंकाली मठ की स्थापना, माँ कंकाली मंदिर से लगभग 400 वर्ष पूर्व का है। 13 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत से यात्रा पर आये नागा साधुओं द्वारा तांत्रिक साधना के लिए शमशान घाट पर इस मठ की स्थापना की थी।रायपुर के ब्राह्मणपारा कंकाली मठ को साल में एक बार दशहरा के दिन ही खोला जाता है। यह परंपरा लगभग 400 साल से निभाई जा रही है। कहा जाता है कि पहले मां कंकाली की प्रतिमा नागा साधुओं ने इस मठ में स्थापित की थी। कंकाली मठ में एक हजार साल से अधिक पुराने शस्त्र जैसे तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान रखे हैं। जिसके ऑनलाइन दर्शन रविवार को दशहरा के अवसर पर हुआ। इस बार भक्तों को कोरोना की वजह से ऑनलाइन दर्शन कराया गया। जिससे भक्तों के मन में थोड़ी मायूसी थी।
क्या है इतिहास ?
17 वीं शताब्दी में कृपालु गिरि इस कंकाली मठ के प्रथम महन्त हुए बाद में इनके शिष्य भभुता गिरि एवं उनके बाद उनके शिष्य शंकर गिरि महन्त बने, ये तीनों महंत निहंग सन्यासी थे, लेकिन समय काल परिवर्तन के साथ महंत शंकर गिरि ने निहंग प्रथा को समाप्त कर अपने शिष्य सोमार गिरि का विवाह कर गृहस्थ महन्त परम्परा का श्री गणेश किया। प्रथम गृहस्थ महन्त श्री सोमार गिरि को कोई संतान नहीं हुए तब उन्होंने अपने शिष्य शम्भु गिरि को महन्त बनाया । शम्भु गिरि के प्रपौत्र श्री रामेश्वर गिरि के पुत्रद्वय गजेन्द्र गिरी गोस्वामी और हरभुषण गिरि गोस्वामी वर्तमतान में इस कंकाली मठ के महन्त व सर्वराकर है।
कंकाली मठ के प्रथम निहंग महन्त कृपालु गिरि को माता जी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मुझे इस मठ से हटाकर तालाब के किनारे टीले के ऊपर स्थापित करो । देवी की आज्ञा को शिरोधार्य कर महन्त जी ने वर्तमान प्रसिद्ध कंकाली देवी मंदिर का निर्माण कर हरियाणा से मंगाई हुइ अष्टभुजी श्रीविग्रह को प्रतिष्ठित किया ।
महंत से हुई थी गलती ?
महन्त कृपालु गिरि को कंकाली देवी ने साक्षात कन्या के रुप में दर्शन दिया लेकिन महन्त जी उसको पहचान नहीं पाये और उनका उपहास कर दिये, जिससे वे कन्या रुपी देवी एकदम अदृश्य हो गयी तब महन्त जी को अपनी गलती का एहसास हुआ इसी पश्चाताप के ज्वाला में जलते हुए महन्त कृपालु गिरि वर्तमान कंकाली मंदिर के बाजु में ही जीवित समाधी ले लिये, जो अभी भी विद्यमान है।
कंकाली मठ के पीछे किवदंती है कि मां कंकाली दशहरा के दिन वापस मठ में आतीं हैं, उनकी आवभगत के लिए मठ खुलता है। रात्रि को पूजा बाद फिर एक साल के लिए मठ के द्वार बंद कर दिए जाते हैं।