दुर्ग। करीब 10 साल पहले गलत तरीके से कोल ब्लाॅक हथियाने और फिर अवैध तरीके से कोयला उत्खनन के जरिए लाभ कमाने के मामले में प्रवर्तन निर्देशालय ने दुर्ग की टापवर्थ लिमिटेड पर शिकंजा कसते हुए 169.64 करोड़ रुपए की संपत्ति को अटैच कर दिया है। आरोप है कि गैरकानूनी तरीके से कोल ब्लाॅक आवंटित किया गया था, जिसके जरिए सरकारी खजाने में सीधे तौर पर डाका डाला गया। अब इस मामले में बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा हैं
जानकारी के मुताबिक ईडी ने 169 करोड़ 64 लाख की अचल संपत्ति अटैच की है। यह अचल संपत्ति मेसर्स टापवर्थ ऊर्जा एंड मेटल्स लिमिटेड (मेसर्स श्री वीरांगना स्टील लिमिटेड) उमरेड महाराष्ट्र में हैं। दरअसल रायपुर का ईडी कार्यालय इस केस की तफ्तीश कर रहा है। अटैच संपत्ति में फैक्ट्री, परिसर व मशीनें शामिल हैं। यह कंपनी दुर्ग स्थिति टॉपवर्थ ग्रुप का सहयोगी संस्थान भी है। ईडी ने एक आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया कि यह यूपीए सरकार के समय गलत तरीके से कोल ब्लाक अलाटमेंट का मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी करार दिया था। कंपनी पर आरोप हैं कि उसने गलत दस्तावेज दर्शा कर कोल ब्लाक हासिल कर लिए थे।
गैरकानूनी तरीके से 9,21,748 मीट्रिक टन कोयला निकाला गया
ईडी ने आरोप लगाया है कि फर्म को गलत तरीके और गलत प्रस्तुति से कोल ब्लाक आवंटित हुए थे। केंद्रीय एजेंसी ने दावा किया, ’गैरकानूनी रूप से कोल ब्लॉक आवंटित होने के कारण कंपनी को 169.64 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। 2011-12 से 2014-15 के दौरान कुल 9,21,748 मीट्रिक टन कोयला गैरकानूनी तरीके से निकाला गया। इन ब्लॉकों से कोयला निकालने से 52.50 करोड़ रुपये की गैरकानूनी आय हुई। कंपनी को कैप्टिव पावर प्लांट से ज्यादा उत्पादित बिजली की बिक्री से 20.40 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।’
मेसर्स टापवर्थ ऊर्जा एंड मेटल्स लिमिटेड नागपुर बेस्ड कंपनी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीबीआई ने इस केस में एफआईआर दर्ज की थी। फिर मामला मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित होने की वजह से ईडी को सौंप दिया गया। यहां यह केस प्रिवेंशन आफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत रजिस्टर्ड हुआ था। इस वजह से छत्तीसगढ़ में रायपुर ईडी की टीम धर्मेंद्र सिंह के नेतृत्व में इसकी जांच में लगी थी। जांच में यह सामने कि फर्म ने षडयंत्रपूर्वक अपराध को अंजाम दिया। इस वजह से उसकी 169 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति अटैच कर ली गई।