नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का अनावरण किया। मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कार्यक्रम में शामिल हुए। पिछले 2 साल से इस मूर्ति को ढंककर रखा गया था। मूर्ति के अनावरण के बाद, JNU के साबरमती ढाबे का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा- अब जेएनयू के छात्रों को डिबेट करने के लिए एक नई जगह मिल गई है। अब वे स्वामी जी की छत्रछाया में भी डिबेट कर सकेंगे।
JNU कैंपस में मूर्ति बनाने का काम 2017 में शुरू हुआ था। 2018 में बनकर तैयार होने के बाद भले ही मूर्ति को ढंककर रखा गया था, लेकिन मूर्ति के नीचे कई बार भड़काऊ बातें लिखी गईं। इससे कैंपस में झगड़े भी हुए थे।
विवेकानंद से सपनों को साकार करने की प्रेरणा मिलती है : मोदी
मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद की मूर्ति सपनों को साकार करने की प्रेरणा देती है। इससे सशक्त भारत का सपना साकार करने की प्रेरणा भी मिलती है। स्वामी विवेकानंद जानते थे कि भारत दुनिया को क्या दे सकता है। एक सदी पहले स्वामी विवेकानंद ने मिशीगन यूनिवर्सिटी में इसकी घोषणा भी की थी। स्वामी जी ने अपनी पहचान भूल रहे भारत में नई चेतना का संचार किया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “सभी नौजवानों से एक नारा बोलने के लिए कह रहा हूं। स्वामी विवेकानंद अमर रहें। इसके बाद उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत की..
- स्वामी विवेकानंद कहते थे कि मूर्ति में आस्था का रहस्य ये है कि आप उस एक चीज से विजन ऑफ इम्युनिटी देखते हैं। मेरी कामना है कि JNU में ये प्रतिमा साहस और वो करेज है, जिसे विवेकानंद जी हर युवा में देखना चाहते थे।
- ये प्रतिमा हमें राष्ट्र के पति अगाध श्रद्धा, प्रेम सिखाए। ये स्वामीजी के जीवन का सर्वोच्च संदेश है। ये प्रतिमा देश को विजन ऑफ वननेस के लिए प्रेरित करे, जो स्वामीजी के चिंतन की प्रेरणा रहा है। ये प्रतिमा देश को यूथ डेवलपमेंट के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे।
- साथियो! ये सिर्फ एक प्रतिमा नहीं है, बल्कि उस विचार की ऊंचाई का प्रतीक है, जिसके बल पर एक संन्यासी ने पूरी दुनिया को भारत का परिचय दिया था। उनके पास वेदांत का ज्ञान था। एक विजन था। वो जानते थे कि भारत दुनिया को क्या दे सकता है।
- वो भारत के विश्व बंधुत्व के संदेश को लेकर दुनिया में गए थे। भारत के सांस्कृतिक वैभव, विचारों और परंपराओं को उन्होंने गौरवपूर्ण तरीके से दुनिया के सामने रखा।
- जब चारों तरफ निराशा, हताशा थी, हम गुलामी के बोझ में दबे थे, तब स्वामीजी ने अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में कहा था कि यह शताब्दी आपकी है, लेकिन 21वीं शताब्दी निश्चित ही भारत की होगी।
- उनके शब्दों को सही करना हम सबका दायित्व है। भारतीयों के इसी आत्मविश्वास और उसी जज्बे को ये प्रतिमा समेटे हुए है।
- ये प्रतिमा उस ज्योतिपुंज का दर्शन है, जिसने गुलामी के लंबे कालखंड में खुद को अपने सामर्थ्य को, अपनी पहचान को भूल रहे भारत को जगाने का काम किया था। भारत में नई चेतना का संचार किया था।
- साथियो! आज देश आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य और संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। आज आत्मनिर्भर भारत का विचार 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की कलेक्टिव कॉन्शियसनेस, आकांक्षाओं का हिस्सा बन चुका है।
- जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो लक्ष्य फिजिकल या मैटीरियल रिलायंस तक सीमित नहीं है। इसका अर्थ व्यापक है, दायरा व्यापक है। इसमें गहराई और ऊंचाई भी है।
- विदेश में एक बार किसी ने स्वामीजी से पूछा था कि आप ऐसा पहनावा क्यों नहीं पहनते, जिससे आप जेंटलमैन लगें? इस पर स्वामीजी ने जो जवाब दिया, वो भारत के आत्मविश्वास और भारत के मूल्यों से जुड़ा था। उन्होंने कहा कि आपके कल्चर में एक टेलर जेंटलमैन बनाता है, हमारे कल्चर में कैरेक्टर तय करता है कि कौन जेंटलमैन है।
- क्या ये सच नहीं है कि आप भारत में गुड रिफॉर्म को बैड पॉलिटिक्स नहीं माना जाता था। गुड रिफॉर्म्स गुड पॉलिटिक्स कैसे हो गए। इसको लेकर जेएनयू के साथी जरूर रिसर्च करें।
- मैं अनुभव के आधार पर एक पहलू जरूर रखूंगा। आज सिस्टम में जितने रिफॉर्म्स किए जा रहे हैं, उनके पीछे भारत को हर प्रकार से बेहतर बनाने का संकल्प है। आज हो रहे रिफॉर्म्स के साथ नीयत और निष्ठा पवित्र है। आज जो रिफॉर्म्स किए जा रहे हैं, उससे पहले एक सुरक्षा कवच तैयार किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा आधार विश्वास है।
- बीते 5-6 सालों में हमने किसानों के लिए एक सुरक्षा तंत्र विकसित किया। सिंचाई का बेहत इन्फ्रास्ट्रक्चर, मंडियों के आधुनिकीकरण पर निवेश, यूरिया, सॉयल हेल्थ कार्ड, बेहतर बीज, फसल बीमा, लागत का डेढ़ गुना एमएसपी, ऑनलाइन मार्केट, पीएम सम्मान निधि से मदद।
- बीते सालों में एमएसपी को भी अनेक बार बढ़ाया गया और किसानों से रिकॉर्ड खरीद भी की गई है। अब किसानों को पारंपरिक साधनों से ज्यादा विकल्प बाजार में मिल रहे हैं। जब विकल्प ज्यादा होते हैं तो खरीदारों में कॉम्पिटीशन बढ़ा है और इसका फायदा किसानों को मिलने वाला है।
- किसानों के साथ गरीबों के मामले में भी यही रास्ता उठाया जा रहा है। लंबे समय तक गरीब सिर्फ नारों में था। सच्चाई ये थी कि देश के गरीब को कभी सिस्टम से जोड़ने की कोशिश ही नहीं हुई। जो सबसे ज्यादा निगलेक्टेड था वो गरीब था। जो सबसे ज्यादा कनेक्टेड था, वो गरीब था। जो आर्थिक रूप से कमजोर था वो गरीब था।
- गरीबों को अपना पक्का घर, टॉयलेट, बिजली, गैस, पानी, डिजिटल बैंकिंग, मोबाइल कनेक्टिविटी और तेज इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा हमने दी है। ये गरीब के इर्द-गिर्द बुना गया सुरक्षा कवच है, जो उसकी आकांक्षाओं की उड़ान के लिए जरूरी है।
- एक और रिफॉर्म जो सीधे आपको जेएनयू जैसे कैम्पस को प्रभावित करता है। ये है नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी। इस पॉलिसी में कोर वैल्यू कॉन्फिडेंस और कैरेक्टर से भरे युवा भारत का निर्माण है। यही स्वामीजी का विजन था। वो चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जो आत्मविश्वास से युवा को आत्मनिर्भर बनाए।
- किताबी ज्ञान तक, मार्क, डिग्री, डिप्लोमा तक युवा की ऊर्जा को क्यों बांधकर रखा जाए। नई पॉलिसी का फोकस इसी बात पर सबसे ज्यादा है। इसके मूल में भाषा सिर्फ माध्यम है, ज्ञान का पैमान नहीं है। बेहतर शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार बेटियों को मिले, ये सुनिश्चित किया गया है। रिफॉर्म्स का निर्णय करना ही काफी नहीं होता, इसे जिस तरह जीवन में उतारते हैं, उससे यह साबित होता है।
- हमारे शिक्षक वर्ग, बुद्धिजीवी वर्ग पर सबसे ज्यादा दायित्व है। जेएनयू के इस कैम्पस में एक बेहद लोकप्रिय जगह है। साबरमती ढाबा। क्लास के बाद इस ढाबे पर जाते हैं और चाय पराठे के साथ डिबेट करते हैं, आइडिया एक्सचेंज करते हैं। पेट भरा हो तो डिबेट में मजा आता है। आपके आइडियाज की, डिबेट, डिस्कशन की जो भूख साबरमती ढाबे में मिटती थी, अब इस स्वामीजी की प्रतिमा की छत्रछाया में इसमें एक और जगह मिल गई है।
- राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देने ने सबसे ज्यादा नुकसान लोकतंत्र को पहुंचाया है। मेरी विचारधारा के हिसाब से ही देशहित के बारे में सोचूंगा, ये रास्ता सही नहीं, गलत है। आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ नहीं।
- आप देश के इतिहास में देखिए, जब-जब देश के सामने कोई कठिन समस्या आई है। हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एकसाथ आए हैं। महात्मा गांधी के नेतृत्व में हर विचारधारा के लोग एकसाथ आजादी के लिए लड़े।
- इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष में ऐसा ही हुआ था। इस एकजुटता में किसी को भी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था। उद्देश्य राष्ट्रहित था और ये उद्देश्य ही सबसे बड़ा था।
- जब राष्ट्रहित का सवाल हो तो विचारधारा के बोझ तले दबकर फैसला लेने से नुकसान होता है। स्वार्थ, अवसरवाद के लिए अपनी विचारधारा से समझौता करना भी सबसे गलत है। इस इन्फर्मेशन एज में इस तरह का अवसरवाद सफल नहीं होता। हमें अवसरवाद से दूर, लेकिन स्वस्थ संवाद को लोकतंत्र में जिंदा रखना है।
- आपके यहां तो आपके हॉस्टल्स के नाम भी गंगा, साबरमती, गोदावरी, ताप्ती, कावेरी, नर्मदा जैसी नदियों के नाम पर हैं। इन नदियों की तरह ही आप सभी देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं। अलग-अलग विचार लेकर आते हैं और यहां मिलते हैं।
- आइडियाज की इस शेयरिंग को, विचारों के प्रवाह को अविरल बनाए रखना है, कभी सूखने नहीं देना है। हमारा देश वो महान भूमि है, जहां अलग-अलग बौद्धिक विचारों के बीज फलते-फूलते हैं।
- आप जैसे युवाओं के लिए इस परंपरा को कायम रखना जरूरी है। भारत इसी परंपरा के कारण दुनिया का सबसे वायब्रेंट लोकतंत्र है।
- देश का युवा कभी भी किसी भी यथास्थिति को स्वीकार ना करे। कोई कहे तो मान लो, ये नहीं होना चाहिए। आप तर्क करिए, वाद करिए, विवाद करिए, मनन-मंथन करिए और फिर किसी नतीजे पर पहुंचिए।
- एक चीज पर खासतौर पर बात करना चाहता हूं। ह्यूमर। हंसी-मजाक। ये ल्युब्रिकेटिंग फोर्स है। अपने भीतर स्प्रिट ऑफ ह्यूमर को जिंदा रखें। कभी-कभी नौजवानों को देखते हैं, जैसे पूरी दुनिया का बोझ उनके सिर पर है। कभी-कभी कैम्पस की पढ़ाई, पॉलिटिक्स में हम ह्यूमर को ही भूल जाते हैं। इसे बचाकर रखना है।
- युवा साथियों, छात्र जीवन खुद को पहचानने के लिए अवसर होता है, ये जीवन की आवश्यकता भी होती है। इसका भरपूर उपयोग भी करिए। स्वामीजी की प्रतिमा राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र जागरण के लिए युवाओं को प्रेरित करे। यही कामना है।
विवेकानंद ने सभ्यता-संस्कृति पर गर्व का भाव जगाया
JNU के वाइस चांसलर ने अपने बयान में कहा- स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे बड़े आध्यात्मिक लीडर्स में शुमार हैं। उन्होंने देश की आजादी, विकास, सहयोग और शांति के लिए काम किया। उन्होंने देश के युवाओं में भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने का भाव जगाया। JNU में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति लगाने का काम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों की पहल पर किया गया है।