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अर्नब आरोप साबित नहीं ,SC ने कहा -किसी की एक दिन की भी आजादी छीनना गलत

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Last updated: 2020/11/27 at 3:41 PM
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3 Min Read
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रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक की आत्महत्या के मामले में राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 11 नवंबर को जमानत दे दी थी। 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब को बेल दिए जाने के मामले में विस्तृत फैसला सामने रखा। इसमें बेल दिए जाने के कारणों को स्पष्ट किया गया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि रायगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज FIR का प्रथम दृष्टया मूल्यांकन उनके खिलाफ आरोप स्थापित नहीं करता।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 4 खास बातें

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1. जमानत पर: 2018 के आत्महत्या मामले में जर्नलिस्ट अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत तब तक जारी रहेगी, जब तक बॉम्बे हाईकोर्ट उनकी याचिका फैसला नहीं दे देता। अंतरिम जमानत अगले 4 हफ्ते के लिए होगी। यह उसी दिन से होगी, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने खुदकुशी मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू की।

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2. हाईकोर्ट, निचली अदालतों पर: हाईकोर्ट्स, जिला अदालतों को राज्य द्वारा बनाए आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग से बचना चाहिए। अदालत के दरवाजे एक ऐसे नागरिकों के लिए बंद नहीं किए जा सकते, जिसके खिलाफ प्रथम दृष्टया राज्य द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने के संकेत हों।

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3. आजादी पर: किसी व्यक्ति को एक दिन के लिए भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत ज्यादा है। जमानत अर्जी से निपटने में देरी की संस्थागत समस्याओं को दूर करने के लिए अदालतों की जरूरत है।

4. अर्नब के खिलाफ आरोप पर: मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज FIR और आत्महत्या के लिए अपमान के अपराध के बीच कोई संबंध नहीं दिख रहा। ऐसे में अर्नब के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो रहे हैं।

अदालत ने जमानत के दौरान यह कहा था
11 नवंबर को सर्वोच्च अदालत गोस्वामी को अंतरिम जमानत देते हुए कहा था कि अगर उनकी निजी स्वतंत्रता को बाधित किया गया तो यह अन्याय होगा। कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई थी कि राज्य सरकार कुछ लोगों को सिर्फ इस आधार पर कैसे निशाना बना सकती है कि वह उसके आदर्शों या राय से सहमत नहीं हैं।

इस मामले में दो अन्य नीतीश सारदा और फिरोज मुहम्मद शेख को भी पचास-पचास हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी। जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च अदालत है।

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