राजयोग, राजतिलक और सत्ता का सुख हर किसी के भाग्य में नहीं होता। करोड़ों में विरले ही होते हैं, जिनके हिस्से में यह विशेष समय आता है। बात छत्तीसगढ़ के संदर्भ में की जाए तो इसके सबसे पहले अधिकारी दिवंगत अजीत जोगी हुए। वर्तमान में उनके ही मंत्रिमंडल के प्रमुख मंत्री रहे भूपेश बघेल का भाग्य दो साल पहले प्रबल हुआ, तो बीच के 15 साल तक सत्ताधीश बनकर डाॅ0 रमन सिंह बैठे रहे। जबकि दिग्गजों की ना तो तब और ना ही अब कोई कमी है।
खैर यह तो बात भाग्य की हुई, लेकिन राजनीति में भाग्य से कहीं ज्यादा जरूरी बात भरोसा की है। छत्तीसगढ़ मूलतः कृषक प्रदेश है, यहां राजनीतिक बिसात चाहे जितनी कुशाग्रता से राजनेता बैठा लें, पर होगा वही, जो छत्तीसगढ़ के किसान चाहेंगे, जिसका परिणाम सामने है।
साल 2003 के विधानसभा चुनाव में किसानों ने ही कांग्रेस की जोगी सरकार की तरफ दृष्टि वक्र की थी, नतीजा कांग्रेस 15 सालों के लिए राज सिंहासन से दूर हो गई। जिस गलती को दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने किया, उसे पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह ने दोहराया, जिसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिला और आज पूरा साथ भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मिल रहा है।
प्रदेश की बागडोर संभालने से पहले उन्होंने प्रदेश के किसानों से जो वायदा किया, उसका भरोसा ही था कि सत्ता की कुंजी कांग्रेस के हाथों में प्रदेश की जनता ने सौंप दी। दो राय नहीं कि प्रदेश की जनता का भरोसा जीतने के लिए प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने दिन-रात एक कर दिया था। बड़ी बात यह है कि कुंजी हाथ में आते ही उन्होंने किसानों के भरोसे को कायम रखा और किए वायदे को पूरा भी कर दिया। जिसकी वजह से आज वही किसान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सबसे बड़ी ताकत बन गए हैं, तो विपक्ष के नेता मिमयाने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।
प्रदेश में आज एक बार फिर धान खरीदी की शुरुआत हो चुकी है। प्रदेश के किसानों के चेहरे पर चमक स्वाभाविक है, क्योंकि देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा समर्थन मूल्य केवल छत्तीसगढ़ के किसानों को मिल रहा है। देश के अन्य राज्यों में धान का समर्थन मूल्य 1868 रुपए है, तो प्रदेश में इस बार भी 2500 की दर से धान खरीदी हो रही है। प्रति क्विंटल प्रदेश के किसानों को 632 रुपए का अतिरिक्त लाभ किसी मायने से कम नहीं होता।
बहरहाल इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश के किसान इस समय राज्य के मुखिया भूपेश बघेल की ताकत हैं, जबकि विपक्षी दल भाजपा को अब तक अपनी असल गलती का अहसास तक नहीं हुआ है। लेकिन इस भरोसे को कायम रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं है।