आज रोशनी एक्ट के अंधेरों से जम्मू-कश्मीर का आम नागरिक परिचित है। तमाम राजनेताओं और नौकरशाहों ने इस एक्ट की आड़ में बड़े पैमाने पर सरकारी भूमि को हड़प लिया था। अब उस जमीन का हिसाब-किताब किया जा रहा है और उसे इन लोगों के कब्जे से मुक्त कराकर आम जनता की विभिन्न आवश्यकताओं और हितों के अनुरूप उपयोग करने की संभावना बन रही है। परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर में हाल तक जारी अंधेरगर्दी और अराजकता पर अंकुश लगने से घबराए हुए नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे चिर-प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल एक मंच पर आ रहे हैं। वस्तुत: गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर के लुटेरों का मौकापरस्त गठजोड़ मात्र है।
माननीय उच्च न्यायालय ने नौ अक्टूबर, 2020 को दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय में जम्मू-कश्मीर के न केवल रोशनी एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया, बल्कि देश के इस सबसे बड़े भूमि घोटाले और जम्मू संभाग के इस्लामीकरण की जिहादी साजिश की जांच सीबीआइ को सौंप दी। अब इस घोटाले की जांच जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की निगरानी में हो रही है और सीबीआइ को भी नियमित रूप से प्रगति रिपोर्ट उच्च न्यायालय में जमा करनी पड़ती है। जैसे-जैसे यह जांच रफ्तार पकड़ रही है, नए-नए राजफाश हो रहे हैं और जम्मू-कश्मीर को निजी जागीर समझकर अदल-बदलकर शासन करने वाले राजवंशों की व्याकुलता, बदहवाशी और बौखलाहट बढ़ती जा रही है।
इस कानून को रोशनी एक्ट इसलिए कहा गया, क्योंकि इससे अर्जित धन से राज्य में पनबिजली परियोजनाएं लगाकर विद्युतीकरण करते हुए राज्य में रोशनी फैलानी थी। लेकिन इसके ठीक उलट काम हुआ। दरअसल यह एक्ट अमानत में खयानत का विधान बन गया। न सिर्फ सरकारी जमीन की बंदरबांट और संगठित लूट-खसोट हुई, बल्कि जम्मू संभाग के जनसांख्यिकीय परिवर्तन की सुनियोजित साजिश भी हुई। इस एक्ट के लाभार्थियों की सूची देखने से पता चलता है कि यह जम्मू संभाग के इस्लामीकरण का सरकारी षड्यंत्र भी था।
अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए फारूक अब्दुल्ला द्वारा चीन से सहायता लेने की बात करना और महबूबा मुफ्ती द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली तक तिरंगा न उठाने की बात कहना इस गठजोड़ और इसके आकाओं की असलियत का खुलासा करते हैं। चीन और शेख अब्दुल्ला परिवार दोनों ही जवाहरलाल नेहरू की आंखों के तारे थे। आज सारा देश इन दोनों के कारनामे और असलियत देख रहा है। रोशनी एक्ट तो गुपकार गैंग की कारस्तानियों की बानगी भर है। अभी ऐसे अनेक कच्चे चिट्ठे खुलने बाकी हैं। रोशनी एक्ट वाली जांच में तो मात्र साढ़े तीन लाख कैनाल भूमि की लूट का ही हिसाब-किताब हो रहा है। जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि इस भूमि को लुटाने से कितनी कमाई हुई, उससे कितने पावर प्रोजेक्ट लगे और कितने गांवों का विद्युतीकरण हुआ।