कवर्धा। जिला अपने प्रकृतिक सुंदरता और दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों, जानवरों के लिए मशहूर है। यहाँ आने वाले पर्यटक भी इसकी तारीफ करते हुए नहीं थकते। आज चिल्फी वन परिक्षेत्रदो बार्न उल्लू का रेस्क्यू किया है। जो दिखने में बेहद सुन्दर है। धार्मिक मान्यतों के मुताबिक ये उल्लू लक्ष्मी की सवारी है। चिल्फी वन परिक्षेत्र के लोहारा टोला परिसर के कक्ष क्रमांक पी. 328 में पैदल गस्त के दौरान इनको रेस्क्यू किया है।
वन्य प्राणी पशु चिकित्सक डॉ. राकेश वर्मा और डॉ. सोनम मिश्रा के नेतृत्व में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लूओं को प्राथमिक उपचार और भोजन व्यवस्था का प्रबंध वन विभाग की टीम द्वारा किया गया है।
बार्न उल्लू दुर्लभ प्रजाति के पक्षी हैं जिनको वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल 3 में स्थान दिया गया है। बार्न उल्लू की औसत आयु 4 वर्ष होती है परंतु ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें बार्न उल्लू 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं। कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं।
प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। राज्य तथा देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है।
बार्न उल्लू को तथा उनके शरीर के विभिन्न अंगों को तंत्र मंत्र में भी उपयोग किया जाता है। भोरमदेव अभ्यारण के चिल्फी परिक्षेत्र में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लू प्रजाति के दोनों पक्षियों को बचाने में प्रशिक्षु भारतीय वन सेवा के अधिकारी गणेश यू.आर., परिक्षेत्र सहायक चिल्फी पूर्व देशमुख तथा स्थानीय वनरक्षक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।