फ्रांस की सड़कों पर बीते दो सप्ताह से कोहराम मचा हुआ है। ये सब कुछ उस सुरक्षा बिल के मद्देनजर हो रहा है जिसको निचले सदन में 24 नवंबर को पारित किया था। इसके पारित होने से पहले और बाद में सरकार और प्रदर्शनकारी आमने-सामने हैं। इस बिल का विरोध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर पत्रकार भी कर रहे हैं। पत्रकारों के मुताबिक इस बिल के जरिए सरकार सूचना की आजादी पर पाबंदी लगाना चाहती है। दरअसल, इस बिल में पुलिसकर्मियों की तस्वीरों के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को उन्हें नुकसान पहुंचाने के मकसद से किया गया अपराध करार दिया गया है। इस बिल के मुताबिक पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की तस्वीरों के साथ उनका व्यक्तिगत विवरण दिया जाना भी अपराध की ही श्रेणी में आएगा।
सरकार की तरफ से कहा गया है कि इस तरह की हरकतों से अधिकारियों को मनोवैज्ञानिक परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। इसमें दोषी पाए जाने पर एक वर्ष की सजा और करीब 45 लाख रुपये (53 हजार डॉलर) के जुर्माने का प्रावधान है। नेशनल असेंबली इसके पक्ष में 388 मत पड़े थे जबकि 104 सदस्यों ने इसके विरोध में अपना मत दिया था, जबकि 66 अनुपस्थित रहे थे। आपको यहां पर ये भी बता दें कि अभी इस पर उच्च सदन में चर्चा होनी है। जनवरी में प्रस्तावित इस चर्चा के बाद यदि ये पारित कर दिया जाता है तो ये एक कानून की शक्ल ले लेगा।
बीती शाम भी 50 हजार से अधिक लोगों ने मिलकर इस बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। ये प्रदर्शन फ्रांस के कई शहरों और राज्यों में किया गया था। इस दौरान उनकी पुलिसकर्मियों से झड़प भी हुई। जवाब में पुलिसकर्मियों को इन प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग भी करना पड़ा। आपको बता दें कि इस बिल के विरोध में अब तक फ्रांस के अलग-अलग हिस्सों में करीब 90 रैलियां हो चुकी हैं। वहीं सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में 64 लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। अकेले पेरिस में ही करीब 30 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
फ्रांस में बीते साल इन्हीं दिनों में प्रस्तावित पेंशन नीति में बदलाव के विरोध में भी कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान कई जगहों पर यातायात पूरी तरह से ठप होगया था। इसके विरोध में कई दिनों तक टीचर, एडवोकेट, परिवहन कर्मचारी, पुलिसकर्मी, स्वास्थ्य कर्मी और अन्य क्षेत्रों के कामकाजी लोग भी सड़कों पर उतर आए थे। विरोध का ये सिलसिला कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद ही टूटा था। 2018 में भी दिसंबर के महीने में ही फ्रांस में येलो वेस्ट मूवमेंट सामने आया था। ये प्रदर्शन न सिर्फ फ्रांस बल्कि कुछ दूसरे देशों में भी दिखाई दिया था।