हाई कोर्ट की खंड न्यायपीठ के माननीय न्यायमूर्ति पी.आर. रामचंद्रा मेनन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू की एकल पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय के मामले में अधिवक्ता अवि सिंह और अधिवक्ता आयुष भाटिया दुआरा दायर याचिका जिसमे PMLA एक्ट की संवैधानिकता चैलेंज करते हुए कानून के प्रावधानो को चुनौती दी है जिसमे E.D. को चार हफ्ते का समय देते हुए जवाब मांगा है और यह भी कहा है कि इन्वेस्टीगेशन कानून के अनुसार होनी चाहिए और जो जांच की जा रही है यह कभी भी किसी भी तरह से उत्पीड़न का कारण नहीं बनेगी।
हाई कोर्ट के अधिवक्ता आयुष भाटिया ने बताया कि ई. डी. की इन्वेस्टीगेशन के चलते सीनियर IAS आलोक शुक्ला एवं अन्य को सर्वव्यापी महामारी में आये दिन बिना निश्चित समय दिए समन्स के ज़रिए अधिकार क्षेत्र के बाहर ED के दिल्ली आफिस बुला कर देर रात तक पूछताछ करते है जोकि अमानवीय, निर्दयी और गैर सहानुभूतिपूर्ण होती है जिससे काफी उत्पीडन होती है।
वो भी ऐसे वक्त में जहां करोना वायरस के बढ़ते केसेस की वजह से सेहत को खतरा और वापस लौटने पर राज्य सरकार के 14 दिन मेंडेटरी क्वारंटाइन होना अनिवार्य है। ई. डी. द्वारा जारी संमन्स में डॉ आलोक शुक्ल एवं अन्य ने पूरा सहयोग देते हुए उपस्थिति दिल्ली जाके दी जोकि 3-4 दिन तक पूछताछ चली। PMLA एक्ट के दुआरा प्रदान की शक्तिओ का हनन कर उत्पीड़ित कर दिनों बैठा के पूछ ताछ करते जिससे व्यथित होकर डॉ आलोक शुक्ला ने अधिवक्ता आयुष भईया के दुआरा रिट पेटिशन दायर की थी जिसमे हाई कोर्ट ने पहले भी 30.06.2020 को जवाब मांगा था।
जो कि देश के कई हाई कोर्ट में इसी तरह के मामले विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष विचाराधीन हैं जिसमे PML Act की संवैधानिकता चैलेंज की जा रही है जिस वजह से प्रवर्तन निर्देशालय आज तक जवाब नही दे पायी है। ED समय मांगते हुए यह प्रस्तुत किये हैं कि उचित तथ्यों और आंकड़ों को सभी प्रासंगिक पहलुओं को छूकर जवाब दाखिल करके रिकॉर्ड पर लाया जाना चाहिए, खासकर जब कानून का प्रावधान याचिकाकर्ता के उदाहरण पर चुनौती के अधीन है।
आपको बताते चलें की प्रवर्तन निर्देशालय की ओर से अधिवक्ता ‘डॉ सौरभ कुमार पांडे’ एंड यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से अधिवक्ता ASG ‘रमाकांत मिश्रा’ हैं।