रायपुर। जुलाई महीने की शुरुआत में देवशयनी एकादशी के साथ शुभ संस्कारों पर रोक लगी थी, जो पांच महीने तक लगी रही। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी से मुहूर्त शुरू हुए। मुश्किल से छह मुहूर्त में शादियां हुई और अब फिर 15 दिसंबर से खरमास लगने जा रहा है। खरमास 14 जनवरी मकर संक्रांति तक चलेगा। चूंकि खरमास को भी शुभ नहीं माना जाता इसलिए फिर से करीब चार महीनों के लिए सभी तरह के संस्कारों पर रोक लग जाएगी।
मकर संक्रांति के बाद तारा अस्त
मलमास खत्म होने के बाद 19 जनवरी से गुरु तारा और फरवरी में शुक्र तारा अस्त रहेगा। दोनों ग्रहों को विवाह का कारक ग्रह माना जाता है, इसलिए फिर से तारा उदित होने के बाद ही 22 अप्रैल से विवाह संस्कार किया जा सकेगा।
ये संस्कार नही होंगे
– जनेऊ संस्कार
– मुंडन संस्कार
– गृह प्रवेश
– सगाई
– विवाह
मीन मलमास के बाद शुभ कार्य
ज्योतिषाचार्य डा. दत्तात्रेय होसकेरे के अनुसार, हर साल सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करता है, तब मलमास शुरू होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तब इसे उत्तरायण की स्थिति में आना कहा जाता है। उत्तरायण में आने के बाद शुभ काल की शुरुआत होती है। इस साल उत्तरायण में भी गुरु और शुक्र तारा के अस्त होने से शुभ संस्कार नहीं होंगे। इसी बीच 14 मार्च से 14 अप्रैल तक मीन मलमास रहेगा। यह महीना भी शुभ नहीं माना जाता। मीन मलमास के बाद 22 अप्रैल से शुभ काल शुरू होगा।
विवाह का कारक ग्रह सूर्य होगा मलिन
मान्यता है कि सूर्य जब धनु राशि में विद्यमान होता है, तो वह मलिन अवस्था में माना जाता है, अर्थात सूर्य की ऊर्जा कम होती है। सूर्य को भी विवाह का कारक ग्रह मानते हैं, इसलिए इस दौरान मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता। यदि कोई शुभ कार्य करने पर अड़ जाए, तो उसे उसका उचित फल नहीं मिलता।
सूर्य के रथ को घोड़े नही, गधे खींचते हैं
ऐसी मान्यता है कि सूर्य के रथ को सात घोड़े खींचते हैं, सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। एक बार उनके घोड़े बहुत प्यासे हो गए थे। तब सूर्यदेव उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए। रथ के रुकने से सृष्टि न थम जाए इसलिये कुछ समय के लिए घोड़ों की जगह गधों को रथ खींचने लगा दिया। गधे धीरे-धीरे रथ खींचते रहे, इससे सूर्य का प्रभाव कम हो गया। यही वजह है कि उस काल को गधे के नाम पर खरमास कहा जाता है।
भीष्म पितामह ने मृत्यु के लिए किया था उत्तरायण का इंतजार
इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त करने वाले भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध में घायल होने के बाद तीरों की शय्या पर लेटे हुए अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण होने का इंतजार किया था। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के बाद शुरू हुए उत्तरायण पक्ष में अपने प्राण त्यागे थे। इस प्रसंग के चलते आज भी संत, महात्मा व शास्त्रों के ज्ञाता विद्वान लोग सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हैं और इसके बाद ही शुभ कार्यों को करने की अनुमति देते हैं।