रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 15 सालों बाद जिस तरह से भाजपा को पटखनी देकर सत्ता हासिल की है, बेशक उसका सबसे बड़ा श्रेय प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को जाता है। उन्होंने विपक्ष में रहकर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर जिस संघर्ष को जीवंत किया था, आज विपक्षी दल के नेतागण भी उसे मिल का पत्थर मान रहे हैं। प्रदेश में निरंकुशता के मजबूत चट्टान को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने “दशरथ मांझी” की तरह तोड़ा, जिसकी परिणिति है कि आज प्रदेश में विपक्ष अपना मजबूत दावा पेश करने की भी स्थिति में नहीं है।
तीन कार्यकाल का बदला
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विपक्ष के उस तीन कार्यकाल को देखा है, भोगा और सहा है। तीसरे कार्यकाल में संगठन की कमान संभालने के साथ ही उन्होंने जो प्रण लिया था, उसकी खातिर ना पांच साल लड़ते रहे, बल्कि सत्तासीन भाजपा को राज्य के सिंहासन से उतारने की प्रत्येक रणनीति को फलीभूत करने के लिए उन्होंने जिस हौसले का परिचय दिया, आज उसका परिणाम है कि तीन कार्यकाल तक बहूमत में रही भाजपा आज सम्मानजनक विपक्ष की हैसियत भी नहीं जुटा पाई। यूं कहा जाए कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ना केवल सत्ता की चाबी छिन ली, बल्कि तीन कार्यकाल का एकमुश्त बदला भी ले लिया।
विरोध और विद्रोही भी मौन
परिवार में विवाद ना हो, यह संभव नहीं है, लेकिन यदि विवाद कलह का रूप धर ले, तो परिवार के बिखरने का डर सताता है। बीते दो साल के भीतर ऐसी कई परिस्थितियों का सामना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी करना पड़ा है, यह एक सच्चाई है। लेकिन दूसरी बड़ी सच्चाई यह भी है कि उनकी रणनीति के सामने तमाम विरोध और विद्राह पानी भरते नजर आते हैं। प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल का गुर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बेहतर आता है, इसका उदाहरण पेश हो चुका है।
प्रदेश की जनता के राज्य की अधारभूत संरचनाओं का विकास मेरी पहली प्राथमिकता है। प्रदेश की जनता ने जो विश्वास कांग्रेस संगठन और मेरे प्रति व्यक्त किया है, उसे पूरा करना ही मेरा ध्येय है। आज छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मजबूत बहूमत के साथ कमजोर विपक्ष नजर आ रही है, तो यह छत्तीसगढ़ की आवाम की आवाज है, जिसे सुनना और उसे समझते हुए निरंतर प्रगति के पथ पर ले जाना आवश्यक है। और उसी दिशा में कार्य हो रहा है।
– भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री