बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने एक ही FIR में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम (SC-ST Act) और पॉस्को अधिनियम का मामला दर्ज होने पर विशेष न्यायाधीश पॉस्को अधिनियम के कोर्ट में सुनवाई का अधिकार दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के. अग्रवाल की एकलपीठ में हुई।
कोरबा जिला के उरगा थाना क्षेत्र के ग्राम कनकिमुडीपारा निवासी राम स्वरूप राजवाड़े के खिलाफ पुलिस ने FIR दर्ज किया है। इसमें उसके खिलाफ पुलिस ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 और लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 ( प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी पॉस्को) का मामला दर्ज किया।
मामले की सुनवाई कोरबा के एससी-एसटी एक्ट के विशेष सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई। इसको आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दिया। इसमें उसके तरफ से कहा गया कि उसका मामला एससी-एसटी एक्ट की विशेष कोर्ट के बजाय पॉस्को के लिए बने विशेष न्यायालय में सुनवाई होनी चाहिए।
मामले में हाईकोर्ट ने अधिवक्ता अनुराग दयाल श्रीवास्तव को न्यायमित्र नियुक्त कर मामले में अपना पक्ष रखने कहा। कोर्ट में बताया गया कि यह विशेष अधिनियम है, इसलिए यह देखा जाएगा कि अधिनियम किसमें समाहित किए जाने का प्रावधान है। हाईकोर्ट में न्यायमित्र के तरफ से पक्ष रखा गया कि पॉस्को एक्ट की धारा 28(2) में प्रावधान है कि पॉस्को एक्ट के साथ कोई भी दूसरा अपराध वह चाहे अन्य अधिनियम के तहत है तो भी ऐसे अपराध के लिए भी पॉस्को एक्ट के तहत विशेष न्यायाधीश विचारण के लिए निर्धारित है। उसी कोर्ट में सभी मामले सुने जाएंगे।
मामले को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के मामले को एससी-एसटी एक्ट कोर्ट से पॉस्को कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट को निर्देश दिया कि वे तत्काल प्रकरण से संबंधित सभी दस्तावेज विशेष न्यायधीश पॉस्को एक्ट के यहां स्थानांतरित कर दें।
अधिवक्ता अनुराग दयाल श्रीवास्तव ने बताया कि एससी एसटी एक्ट में ऐसा प्रावधान नहीं है कि उस कोर्ट में दूसरे मामले की सुनवाई हो सके। ऐसी परिस्थिति में पॉस्को अधिनियम में प्रावधान किए गए हैं कि पॉस्को के विशेष न्यायाधीश के किसी भी अधिनियम के तहत सुनवाई कर सकते हैं।
अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का है इस पर 2015 में संशोधन किए गए थे। जबकि पॉस्को अधिनियम 2012 का है। इस अधिनियम में एससी-एसटी एक्ट को समाहित किया कर विशेष न्यायाधीश पॉस्को के तहत विचारण का अधिकार दिया गया है।
यदि कोई अभियुक्त किसी घटना के अनुक्रम में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 और पॉस्को अधिनियम से दंडनीय अपराधों के लिए एक ही विचारण में एक साथ आरोपित किया जाता है, तब ऐसी स्थिति में पॉस्को अधिनियम के तहत अधिसूचित व गठित निर्दिष्ट विशेष न्यायालय को दोनों अधिनियमों के अधीन अपराधों का विचारण करने की अनन्य अधिकारिता होगी।