रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री का मुद्दा एकबार फिर गरमाने लगा है। भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी नेताओं ने इस विषय को लेकर सालों बाद एकजुटता का परिचय दिया है। प्रदेश के पहले नेता प्रतिपक्ष और आदिवासी नेता डाॅ. नंदकुमार साय के निवास पर हुई आदिवासी नेताओं की गोपनीय अब सार्वजनिक हो गई है।
इस मामले में प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी भाजपा नेता डाॅ. नंदकुमार साय के साथ ही राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय का बड़ा बयान सामने आया है। इस बैठक में प्रदेशाध्यक्ष और आदिवासी नेता विष्णुदेव साय शामिल नहीं हुए थे, इस बात को लेकर भी राजनीतिक कलह की बात सामने आ रही है।
डाॅ0 नंदकुमार साय का इस मामले में कहना है कि छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है और राज्य गठन के साथ ही आदिवासी नेतृत्व की मांग शुरू से होती रही है, लेकिन प्रदेश की जनता हर बार ठगी जाती रही। उन्होंने कहा कि अब आदिवासी नेताओं की एकजुटता का पूरा प्रभाव नजर आएगा और भाजपा 2023 के चुनाव को दृष्टिगत करते हुए रणनीति बनाएगी, जिसमें साफतौर पर आदिवासी नेतृत्व को महत्व देने की बात रखी जाएगी।
तो दूसरी तरफ भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदेव साय का बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें बैठक में शामिल होने का न्यौता मिला था, लेकिन किन्हीं कारणों से वे शामिल नहीं हो पाए। वहीं उनका यह भी कहना है कि प्रदेश में नेतृत्व कौन करेगा, इसका फैसला भाजपा में उच्च नेतृत्व का ही मान्य रहा है, लिहाजा इस विषय पर चर्चा पहले राष्ट्रीय नेतृत्व से होनी चाहिए, उसके बाद उनका जो भी निर्णय होगा वही माना जाएगा।
बहरहाल आदिवासी नेतृत्व को लेकर भाजपा में आवाज उठती रही है और हर बार प्रयास डाॅ0 नंदकुमार साय के द्वारा ही किया गया है, लेकिन एकजुटता की कमी की वजह से 15 सालों तक भाजपा की सरकार रहते हुए भी आदिवासी नेतृत्व को मौका नहीं मिला, जिसका मलाल आदिवासी नेताओं को अब भी है। वहीं प्रदेश में भाजपा को चौथी बार नेतृत्व नहीं मिल पाने की बड़ी वजह भी यही रही कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने चेहरों के बदलाव पर ध्यान नहीं दिया।