देश को कोरोना वायरस के खिलाफ 16 जनवरी से बड़ी जीत मिलने जा रही है। दरअसल, इसी दिन से टीकाकरण की शुरुआत होने वाली है। इसके लिए, विभिन्न राज्यों में वैक्सीन के पहुंचाने का काम भी शुरू हो गया है। ट्रकों और विमानों के जरिए से वैक्सीन्स एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जा रही हैं। जैसे-जैसे टीकाकरण का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सोशल मीडिया पर उसको लेकर अफवाहें तेज होती जा रही हैं। लोग अफवाह उड़ा रहे हैं कि वैक्सीन के जरिए से लोगों के अंदर एक चिप लगाई जा सकती है। वहीं, कई लोग सुई पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे में देश और दुनिया में कोरोना टीका और टीकाकरण को लेकर जो अफवाहें फैलायी जा रही हैं, उनसे जुड़े सच हम आप तक पहुंचा रहे हैं।
1. अफवाह : फर्जी टीका लगाने के लिए गायब होने वाली सुई का इस्तेमाल हो रहा
सच : यह अफवाह सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित की जा रही है, जिसमें विशेष तरह की सेफ्टी सिरिंज की तस्वीरों को गलत जानकारी के साथ दिखाया जा रहा है। इस तरह अफवाह फैलाने वाले लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं कि सरकार के पास कोरोना का कोई टीका नहीं है। वे सिर्फ षडयंत्र रच रहे हैं। दरअसल, टीकाकरण में अब ऐसी सुइयों का इस्तेमाल होता है, जो उपयोग के तुरंत बाद उसी उपकरण में वापस चली जाती है, जिसमें वे जुड़ी रहती हैं।
2. अफवाह : कोरोना का टीका लगाने के बाद इंसान का डीएनए बदला जा सकता है
सच : फाइजर-बायोएनटेक व मॉडर्ना के बनाए कोविड-19 के टीकों में वायरस के अनुवांशिक तत्वों के अंश (मैसेंजर-आरएनए) का उपयोग किया गया है। इसको आधार बनाकर यह अफवाह उड़ाई जा रही है कि वायरस के अनुवांशिक तत्व, इंसानों के अनुवांशिक तत्वों या डीएनए को बदल देंगे। इस बारे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफरी आलमंड का कहना है कि किसी व्यक्ति के शरीर में आरएनए को प्रवेश कराने से उनकी मानव कोशिकाओं के डीएनए पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह आरएनए इंसानी कोशिकाओं को ऐसा प्रोटीन पैदा करने का निर्देश देता है, जो कोरोनोवायरस की सतह पर मौजूद हो। इस तरह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उस प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडीज को पहचानना और उसका उत्पादन करना सीखती है।
3. अफवाह : कोरोना वैक्सीन के जरिए इंसानों के शरीर में एक खास चिप लगाई जाएगी ताकि उन्हें सरकार या उद्योगपति उसे अपने कब्जे में ले सकें।
सच : यह कोरी अफवाह है, जो पिछले साल टीका बनाने की घोषणा के साथ ही इंटरनेट पर फैलने लग गई थी। अफवाहबाजों ने बिल गेट्स का नाम भी इसमें घसीट लिया कि माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक इस तरह विशेष चिप लोगों के शरीर में लगवाने की योजना बना रहे हैं। हालात इतने बिगड़ने लगे कि इस पर बाकायदा उनकी पत्नी ने बयान देकर इसे फर्जी बताया।
4. अफवाह : वैक्सीन बनाने में इंसानी भ्रूण के फेफड़ों के ऊतकों का इस्तेमाल किया गया
सच : फेसबुक पर संचालित होने वाले सबसे बड़े टीका-विरोधी ग्रुप ने इस तथ्यहीन सूचना को प्रसारित किया। साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के डॉ. माइकल हेड ने बताया कि किसी भी वैक्सीन उत्पादन प्रक्रिया में भ्रूण की कोशिकाओं का उपयोग नहीं किया जाता है। हेड बताते हैं कि यह अफवाह इसलिए फैली क्योंकि प्रयोगशाला में विकसित की गई कोशिकाओं पर सबसे पहले प्रायोगिक टीके का परीक्षण किया जाता है। 1960 में विकसित हुई इस तकनीक के लिए कभी किसी भ्रूण की हत्या नहीं की गई।
5. अफवाह : जब कोरोना से ठीक होने की दर 99.97 प्रतिशत है तो फिर टीका लगवाने की जरूरत नहीं।
सच : सोशल मीडिया पर टीकाकरण का विरोध करने वाले लोग मीम चलाकर यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि टीका लगवाने से सुरक्षित उपाय तो संक्रमित हो जाना है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सांख्यिकीविद् जेसन ओके कहते हैं कि कोविड का रिकवरी रेट 99.97 प्रतिशत नहीं बल्कि लगभग 99.0% है। यानी 10,000 मरीजों में लगभग सौ लोगों की मृत्यु हो जाएगी, जबकि मीम में दिखाया जा रहा आंकड़ा 10,000 में तीन की मौत ही बताता है, जो भ्रामक है। साथ ही, वह कहते हैं कि भले मरीज ठीक हो रहे हों पर उनमें कोविड-19 से जुड़े असर लंबे वक्त तक बने रहते हैं जो देश के स्वास्थ्य संसाधनों पर बोझ है, इसलिए टीका लगवाकर इस प्रभाव से बचा जा सकता है।