कोरोना महामारी के मद्देनजर शुरू की गई साफ-सफाई ने डेंगू की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले वर्ष जनवरी से दिसंबर (2020) तक गोरखपुर जिले में डेंगू के मात्र छह केस ही आए, जबकि वर्ष 2019 में 142 डेंगू के मामले आए थे। डॉ. एके चौधरी, एसीएमओ (वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम) ने बताया कि कोविड-19 से बचाव के लिए किए जा रहे सैनिटाइजेशन का काफी असर रहा है। यही वजह है कि मच्छरों का प्रकोप कम रहा है।
डॉ. एके चौधरी ने बताया कि विसंक्रमण के तौर-तरीकों को अपनाकर और सफाई का व्यवहार अपनाते हुए न केवल डेंगू पर, इसके अलावा मलेरिया और इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। डेंगू का मच्छर साफ पानी में पनपता है। इसका वाहक एडीज मच्छर दिन के समय काटता है। कूलर, गमले, टायर, एसी ट्रे, नाद जैसी चीजों में जब साफ पानी जमा होता है, तो वहां इसके मच्छर पनपते हैं।
चौथा और सातवां दिन बेहद खतरनाक
डॉ. एके चौधरी ने बताया कि डेंगू के सामान्य मामलों में बुखार का चौथा से सातवां दिन बेहद खतरनाक होता है। पहले दिन से लेकर पांच दिन तक सिर्फ एनएसवन टेस्ट पॉजिटिव आता है, जबकि पांच दिनों के बाद एलाइजा टेस्ट पॉजिटिव आता है। निजी चिकित्सकों से अपील की है कि डेंगू के मरीज मिलते ही इसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग को जरूर दें।
मादा मच्छर के काटने से होता है डेंगू
डेंगू मादा एडिज मच्छर के काटने से होता है। इस मच्छर के काटने के पांच से छह दिन बाद डेंगू के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। डेंगू के सबसे खतरनाक लक्षणों में हड्डियों का दर्द शामिल है। इसी वजह से डेंगू बुखार को ‘हड्डीतोड़ बुखार’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ितों को इतना अधिक दर्द होता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गई हों।
सीएमओ डॉ. सुधाकर पांडेय ने बताया कि जिले के किसी भी निजी अस्पताल या फिर लैब में डेंगू का मामला सामने आता है, तो उसे मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय को अवश्य रिपोर्ट करें, ताकि एलाइजा टेस्ट के साथ-साथ निरोधात्मक कार्रवाई की जा सके।