रायपुर। बीते साल मार्च से स्कूलों में जो ताला पड़ा, पूरा साल बीतने को है, पर खुल नहीं पाया है। बच्चों की पढ़ाई का कोई हिसाब-किताब नहीं है, पर निजी स्कूल फीस लेना नहीं छोड़ना चाहती। शैक्षणिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप है, नाम के लिए आॅनलाइन क्लासेस चलाया जाता है, जिससे बच्चों का कितना बौद्धिक विकास हो रहा है, इसकी कोई पड़ताल नहीं होती, पर निजी स्कूल प्रबंधन को केवल अपनी मोटी फीस वसूली से मतलब है, जिसके लिए वे बच्चों के पालकों के साथ अब मासूम बच्चों को मानसिक प्रताड़ना देने लगे हैं।
व्हाट्सएप गु्रप पर बच्चों का नाम लिखकर उन्हें जलील करने से भी स्कूल प्रबंधन बाज नहीं आ रहा है, जबकि केंद्र से लेकर राज्य सरकार ने निर्देश जारी किया है कि आॅनलाइन क्लासेस के लिए न्यूनतम शुल्क ही मान्य होगा। इसे भी स्कूल तय नहीं करेगा, बल्कि सभी स्कूलों को फीस निर्धारण समिति का गठन किया जाना है। इसमें स्कूल प्रबंधन के साथ पालक और प्रशासन के लोगों की मौजूदगी होगी और जिला शिक्षा कार्यालय का अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
इन निर्देशों की राजधानी में किस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है, इसका प्रमाण दो दिन पहले मिल चुका है, जब जिला शिक्षा अधिकारी ने 240 निजी स्कूलों की मान्यता समाप्त किए जाने का नोटिस जारी कर दिया था। इसके बाद आनन-फानन में इन स्कूलों ने जिला शिक्षा अधिकारी के समक्ष उपस्थिति दर्ज कराई और माफीनामा प्रस्तुत किया।
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पालकों का साफ कहना है कि जब स्कूल नियमित चल रहे थे, तो फीस जमा करने में उन्हें कभी भी परेशानी नहीं हुई, क्योंकि उनके बच्चों को तब पढ़ाया जाता था, उनकी नियमित परीक्षाएं होती थी, लेकिन बीते 8-9 माह से इन तमाम गतिविधियों पर विराम लगा हुआ है, केवल नाम के लिए आॅनलाइन कक्षाएं लगाई जा रही है, जिससे बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है। उन्हें उन विषयों की सही जानकारी नहीं मिल पा रही है, जिसे वे नहीं समझ पा रहे हैं, तो फिर फीस वसूली का क्या औचित्य है।
पालकों का कहना है कि पहले तो केवल अभिभावकों को परेशान किया जाता था, लेकिन अब निजी स्कूल मनमानी की तमाम हदों को पार करते हुए बच्चों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने लगे हैं। जिसके लिए पालकों को सड़क पर उतरना पड़ा है।
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