एक महिला की गुजारा भत्ता याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि महिला उच्च शिक्षित है और खुद का गुजारा चलाने लायक कमाती है। बिना वजह पति पर बोझ बनना उचित नहीं। जबकि वह खुद योग्य है और पिछले दो साल से जीवन-यापन चला रहा है।
रोहिणी अदालत ने इस मामले में महिला को सलाह भी दी है कि इस तरह की सोच अपनी खुद की प्रगति के रास्ते रोड़ा अटकाने जैसा है। अगर आप काबिल हैं तो अपनी काबिलियत को बढ़ाने के लिए आगे प्रयास करने चाहिएं ना कि गुजाराभत्ते के जरिए अपने बढ़ते कदमों को रोकने की। हालांकि अदालत यह भी कहा कि महिला का अधिकार होता है गुजाराभत्ता पाना। लेकिन कानून में उन महिलाओं के लिए यह प्रावधान किया गया है जो पूरी तरह से पति या परिवार पर जीवन-यापन के लिए मजबूर होती हैं। इसमें खासतौर से घरेलू महिलाओं को शामिल किया गया है जो खुद कमाने-खाने लायक नहीं होती।
अदालत ने यह निर्णय महिला के हलफनामे पर गौर करते हुए दिया है। महिला ने हलफनामे में आयकर संबंधी जानकारी दी है जिसकी मुताबिक वह एक स्कूल में पिछले दो साल से पढ़ा रही है और 20 हजार रुपये से ज्यादा की तनख्वाह पा रही है। अदालत ने कहा कि एक अकेली महिला के लिए यह तनख्वाह गुजारा चलाने के लिए कम नहीं है। इसलिए महिला की गुजाराभत्ता याचिका को खारिज किया जाता है।
पेश मामले के अनुसार महिला का अपने पति से वैवाहिक विवाद चल रहा है। वह पिछले कई साल से पति से अलग रह रही है। महिला ने पति से गुजाराभत्ते की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। महिला का कहना था कि वह अपने पिता के मकान में रहती है और क्योंकि उसका गुजारा चलाना पति की जिम्मेदारी है इसलिए उसे प्रतिमाह 15 हजार रुपये गुजाराभत्ता देने के निर्देश दिए जाएं।