हाई कोर्ट की नागपुर पीठ एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, अदालत ने एक और फैसला सुनाया है, जिसमें कोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यौन उत्पीड़न का यह मामला आईपीसी की धारा 354ए के तहत आएगा। बता दें कि नागपुर पीठ ने पहले त्वचा से त्वचा का स्पर्श न होने पर यौन उत्पीड़न नहीं मानने का फैसला सुनाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
इस मामले में हुई सुनवाई
जानकारी के मुताबिक, अदालत ने 12 साल की बच्ची से छेड़छाड़ के मामले में सुनवाई की। इस मामले में बच्ची की मां ने बताया कि उसने 50 वर्षीय आरोपी को देखा था। आरोपी की पैंट की जिप खुली हुई थी और उसने मेरी पांच साल की बेटी का हाथ पकड़ रखा था। महिला के मुताबिक, उसकी बेटी ने बताया था कि आरोपी ने अपना प्राइवेट पार्ट निकाला था और उसे बिस्तर पर लेटने के लिए कहा था।
सत्र न्यायालय ने सुनाया था यह फैसला
इस मामले की सुनवाई पहले नागपुर सत्र न्यायालय में हुई थी। सत्र न्यायालय ने आरोपी को दोषी ठहराया था। साथ ही, पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत इसे दंडनीय यौन उत्पीड़न माना था। साथ ही, दोषी को छह महीने के साधारण कारावास के साथ पांच साल की कठोर सजा सुनाई थी। इसके अलावा 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। दोषी पक्ष ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में इस फैसले को चुनौती दी थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनाया यह फैसला
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने फैसला सुनाया कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो अधिनियम 2012 यानी यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा के तहत यौन शोषण की परिभाषा में नहीं आएगा। अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 354-ए (1) (i) के तहत ऐसा करना ‘यौन उत्पीड़न’ के दायरे में आता है। एकल पीठ ने इस मामले में पॉक्सो अधिनियम की धारा 8, 10 और 12 को उपयुक्त नहीं माना और आरोपी को धारा 354A (1) (i) के तहत दोषी ठहराया, जिसमें अधिकतम तीन साल की कैद की सजा का प्रावधान है। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने पांच महीने जेल काट ली है, जो इस अपराध के लिए पर्याप्त है।