सरकार बनने के साथ ही विधायकों में मंत्री बनने की तो, संगठन के नेताओं में निगम, मंडल आयोग के अलावा अन्य ऐसे शासकीय संस्थाओं में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य बनने की होड़ लग जाती है, जिसके जरिए राज्यमंत्री का दर्जा हासिल हो सके। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कुछ इसी तरह के हालात बने हुए हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने काफी लोगों को पद आवंटित कर दिया है, लेकिन अभी भी नियुक्तियों की ओर मुंह ताके काफी संख्या में नेतागण बैठे हुए हैं और दिल्ली दौड़ भी लगाते रहते हैं।
ठीक इन्हीं हालातों से मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी गुजर रही है। मंत्रिमंडल विस्तार और बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी का गठन होने के बाद भी पार्टी में असंतोष बढ़ने का अंदेशा है। ऐसे में असंतुष्ट सांसद और विधायकों को जिला को-ऑपरेटिव बैंकों में अध्यक्ष बनाने के लिए सरकार ने प्रदेश सहकारी सोसायटी (संशोधन) अध्यादेश 2020 लागू कर दिया है। इसके साथ ही इन बैंकों के अध्यक्षों को कैबिनेट या राज्य मंत्री का दर्जा देने की तैयारी भी है।
प्रदेश में 38 जिला सहकारी बैंक हैं। इनमें से छतरपुर, सतना, सीहोर में अध्यक्ष पदस्थ हैं, जिनका कार्यकाल छह माह से डेढ़ साल तक है। जबकि पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद को लेकर हाईकोर्ट का स्टे चल रहा है। ऐसी स्थिति में अब सरकार ने सहकारी एक्ट में संशोधन कर प्रदेश के सांसद और विधायकों को 34 जिला सहकारी बैंकों, अपैक्स बैंक सहित अन्य सहकारी संस्थाओं में अध्यक्ष बनाने का रास्ता निकाला है। बता दें कि सांसद-विधायक पहले भी इन बैंकों के सदस्य होते थे। लेकिन सरकार ने इस एक्ट में संशोधन करते हुए इस प्रावधान को हटा दिया था।